श्री धवलाजी ग्रंथ की वाचना चल रही थी। आचार्य महाराज श्री ने कहा- पंडित जगन्मोहन लाल जी कटनी वालों ने एक दिन मुझे बताया कि- एक कोई वृद्ध महान ग्रंथ को पढ़ रहे थे तो मैंने पूँछा - समझ में आ रहा है, जो आप पढ़ रहे हैं। वृद्ध ने कहा - हाँ, इतना समझ में आ रहा है कि-हम पढ़ रहे हैं, हमें तो स्वाध्याय करना है, बस। गुरुदेव ने आगे बताया कि - बात सच है, जो केवलज्ञान के द्वारा जाना गया है वह हम पूर्ण नहीं जान सकते इसलिए यह प्रभु की वाणी है। ऐसा श्रद्धान रखकर पढ़ते जाना चाहिए क्योंकि ये तो मंत्र जैसे हैं। "आचार्यों के प्रत्येक शब्द मंत्र हुआ करते हैं।''
मैंने मंगलाचरण किया, एक विद्वान वहीं बैठे थे। मैंने मंगलाचरण में णमो अरिहंताणं बोला - तो वे विद्वान बोले आपके मुख से ये मंत्र सुनने में भी आनंद आता है। आचार्य श्री ने बताया कि-मानसिक मंत्र तो और भी अधिक आनंद देता है क्योंकि, मन की एकाग्रता से वचन, काय में भी एकाग्रता आ जाती है।
जब वीतरागी गुरु का दर्शन ही आनंददायी होता है और फिर जब उनके मुख से शब्द, मंत्र सुनने मिल जावे तो फिर कहना ही क्या। गुरुओं ने हमारे ऊपर महान उपकार किया है जो करुणा भाव से ग्रंथों की रचना की। इसलिए हमारा भी कर्त्तव्य बनता है कि हम भी समय निकालकर शास्त्रों का स्वाध्याय अवश्य करें क्योंकि, स्वाध्याय और साधुसंगति हमारे मन को धोने के लिए साबुन और पानी का काम करते हैं। वर्तमान समय में विपरीतताओं में जीवन को सम्बल मात्र ‘स्वाध्याय' से ही प्राप्त हो सकता है।
साधु सन्त कृत शास्त्र का, सादा करो स्वाध्याय।
ध्येय, मोह का प्रलय हो, ख्याति लाभ व्यवसाय॥
(21 नबम्बर 2002)