मोक्षमार्ग में देव-शास्त्र-गुरु पर श्रद्धान रखना ही सम्यग्दर्शन माना जाता है। जो कि मोक्ष महल का प्रथम सोपान है। प्रभु-गुरु की आज्ञा मानना आज्ञा सम्यक्त्व माना जाता है। यूँ कहो जो प्रभु और गुरु ने कहा है यही तत्त्व ग्रहण करने योग्य है ऐसा विचार करना आज्ञा-विचय धर्म ध्यान माना जाता है। इस धर्म के माध्यम से ही संसारी प्राणी को सुख शांति की उपलब्धि होती है चाहे वह लौकिक-शारीरिक सुख हो, शाश्वत-मोक्ष सुख हो; धर्म के बिना प्राप्त नहीं हो सकता।
आचार्य श्री ने बताया कि-हमें अपने धर्म पर विश्वास होना चाहिए, अपने सत्कर्मों एवं परिणामों पर विश्वास होना चाहिए। फिर अपने आप कर्मों में परिवर्तन आने लगता है। असाता कर्म भी साता में परिवर्तित हो जाता है यही तो परिणामों का वैचित्र्य है। आचार्य श्री ने बताया - एक वृद्ध श्रावक मेरे पास आये। उन्हें असाध्य रोग (कैंसर) हो गया था, तकलीफ बहुत थी। मैंने उन्हें आशीर्वाद दिया, और कहा - कुछ त्याग कर सकते हो ? उन्होंने हाथ जोड़कर कहा - जी महाराज जी। मैंने उनसे कहा -अब एक ही दवाई है असाता को साता में बदलने की। उन्होंने कहा - क्या ? मैंने कहा कि - व्रत नियम से रहो, रात्रि में चारों प्रकार के (खाद्य, स्वाद्य, लेय एवं पेय) आहार का त्याग कर दो और रात्रि में दवाई भी नहीं लेना। उन्होंने आस्था के साथ ये नियम ले लिया। बस फिर क्या उनका परिणाम प्रत्यय काम कर गया। कुछ दिन बाद वे पुन: मेरे पास आये और बोले कि -आचार्य श्री ! मेरा कैंसर तो कैंसिल हो गया। यह है परिणामों का खेल, असाता भी साता में बदल गया। संकल्प के माध्यम से, आस्था के माध्यम से, परिणामों को इस तरह से बदला जा सकता है। फिर मैंने पूँछा - क्यों”, जो नियम लिये थे उनका अच्छे से पालन हो रहा है ? बोले - जी महाराज जी, अच्छे से हो रहा है। आचार्य श्री ने अंत में कहा सुनो - इस चिकित्सा को एक गरीब व्यक्ति भी अपना सकता है लेकिन, धैर्य और श्रद्धान होना चाहिए। यह है अपने परिणामों का वैचित्र्य।
03.10.2002