बीना बारहा जी अतिशय क्षेत्र में चातुर्मास में सारा संघ साधनारत् था। चातुर्मास में कवि सम्मेलन हुआ। विभिन्न प्रदेशों / नगरों से कविगण आये हुए थे। सभी ने गुरुदेव के दर्शन किए एवं अपने आप को धन्य माना। सच है, अतिशय पुण्य के उदय से ही ऐसी महान आत्माओं के दर्शन का लाभ प्राप्त हो पाता है। संसार में कई दुर्लभताओं के साथ सत्संगति भी दुर्लभ है, और उन गुरुओं का उपदेश एवं अनुकम्पा का पात्र बनना और भी दुर्लभ से दुर्लभतम है।
कवि सम्मेलन के बाद सभी कविगण गुरुदेव के चरणों में समीप ही आकर बैठ गये। सभी ने शांतिनाथ भगवान की एवं क्षेत्र की प्रशंसा की। गुरुदेव से मार्ग दर्शन चाहा यह सुन गुरुदेव कुछ क्षण कुछ न बोले, चिंतन की मुद्रा में ही बैठे रहे। फिर सहज ही बोले - आप लोगों को अहिंसा के क्षेत्र में भी अपनी लेखनी चलाना चाहिए ताकि अहिंसाधर्म का प्रचारप्रसार हो सके। और, स्वयंको भी अहिंसक बनना होगा तभी आपकी कविताएँ गौरव को प्राप्त होंगी।
"कदम में फूल हो और कलम में शूल हो तो क्या होगा।" लेखन के माध्यम से भी अहिंसा की वृत्ति कितनी है यह मीमांसा की जा सकती है।
दया धर्म के कथन से, पूज्य बने ये छन्द।
पापी तजते पाप हैं, दृग पा जाते अंध॥
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, 28.08.2005)