इंदौर गोम्मटगिरि चातुर्मास के बाद समस्त संघ सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर की ओर जा रहा था। हाटपीपल्या से होते हुए खातेगाँव पहुँचे। अब नेमावर पास ही था। प्रातः काल गुरुदेव के पास बैठे थे। वे हमेशा अनियत विहार ही किया करते हैं कभी किसी को पूर्व सूचना नहीं मिलती कि गुरुदेव का विहार कहाँ हो रहा है। पास में बैठे हुए महाराज लोगों ने कहा - अब तो यात्रा पूरी होने वाली है नेमावर पास में ही है। आचार्य श्री मुस्कुराकर सहसा बोले - कि नहीं ! अभी यात्रा पूर्ण नहीं होगी। मोक्षमार्गी संयमी जीव की यात्रा जीवन भर चलती है उसकी तो जीवन ही यात्रा है जब तक मोक्ष मंजिल नहीं पहुँचते तब तक यात्रा ही होती है/मानी जाती है। ध्यान रखो हम सभी मोक्षमार्ग के यात्री हैं।
यह एक छोटी-सी लेकिन बहुत ही गम्भीर बात जो कि एक साधक को अपने जीवन के ध्येय के प्रति सचेत करती है कि कहीं मार्ग को ही मंजिल मत समझ लेना, मार्ग सो मंजिल नहीं। संसार में रहना एक पड़ाव है अभी हमें और कहीं जाना है स्टेशन को स्टेशन ही मानें मंजिल नहीं तभी हम अनवरत यात्री बने रह सकते हैं और अपनी मंजिल को पा सकते हैं। आचार्य गुरुदेव हमेशा अपने मार्ग के प्रति, मोक्ष की यात्रा के प्रति सजग बने रहते हुए अपने शिष्यों को, साधकों को भी मार्ग की यात्रा के प्रति सचेत करते हुए अनवरत आगे की ओर बढ़ते ही जा रहे हैं। वे कहाँ तक पहुँच गये हैं यह कल्पनातीत है। धन्य हैं ऐसे वीतरागी संत जिन्हें देखकर ही महावीर के मार्ग का भान हो जाता है।
(खातेगाँव 2002)