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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • दृष्टि लक्ष्य की ओर

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    एक बार एक साधक के दांत में छेद हो गया जिससे तकलीफ बनी रहती। आहार के समय और अधिक तकलीफ बढ़ जाती। डॉक्टर को दिखाया, उस दिन उनका उपवास था। डॉक्टर ने उस दाँत को निकाल दिया, बहुत खून गिरा। जब आचार्य श्री जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने पूँछा - क्यों, उन्हे दाँत से बहुत खून आया। मैंने कहा - जी आचार्य श्री, डॉक्टर ने ऊपर, गाल पर बर्फ रखा वह ठण्डा लगा, उस ओर ध्यान गया कि झटके से दाँत निकाल दिया, मालूम ही नहीं पड़ा दाँत कब निकल गया। यह सब उपयोग के परिवर्तन से हुआ। उपयोग/ध्यान बर्फ की ठण्डक पर गया और यहाँ काम हो गया। यह सुनकर आचार्य महाराज बोले - यदि हमारा उपयोग भी लक्ष्य की ओर हो जावे तब मार्ग में आने वाली समस्याएँ, उपसर्ग, परीषह सभी सहज रूप से सहन हो जाते हैं। पुनः मैंने कहा - आचार्य श्री जी उस दाँत की जड़ बहुत मजबूत थी। आचार्य श्री सहसा ही बोले - जड़ मजबूत होती है तभी चने चबते हैं वैसे ही सम्यग्दर्शन मजबूत होता है तभी संसार के चने चबते हैं। यह घटना बताती है कि गुरुदेव की लक्ष्य की ओर दृष्टि हमेशा रहती है। वे हमेशा प्रत्येक घटना को मोक्षमार्ग के साथ जोड़कर उदाहरण बना देते हैं एवं हर क्षण हम साधकों को भी लक्ष्य को ध्यान में रखकर चलने का उपदेश देते हैं। लक्ष्य निर्धारण कर एवं लक्ष्य पर चलना व लक्ष्य प्राप्ति में बाधाओं का सहर्ष सामना करना महान पुरुष का कार्य हुआ करता है। महापुरुष कभी भी लक्ष्य को प्राप्त करते समय आ रही बाधाओं से डरते नहीं हैं बल्कि, उन बाधाओं को सफलता की सीढ़ी समझकर उस पर पैर रखकर आगे बढ़ जाते हैं।

    (सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर जी 2002)


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