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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ड्रायवर

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    आज वर्तमान में धर्म थ्योरेटिकल (सैद्धांतिक) ज्यादा हो गया है, प्रेक्टीकल कम रह गया है। लोग ज्ञान, स्वाध्याय तो करते हैं लेकिन, ध्यान की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि-भोजन करना जितना जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी है उसका चर्वण एवं पाचन। मात्र भोजन ही कर लिया जाए उसे सही ढंग से चबाया न जाये एवं पाचन न हो पावे तो वह अनेक रोगों का जन्म दाता बन जाता है। ठीक उसी प्रकार तीनों समयों में मात्र स्वाध्याय ही किया जावे तो वह समीचीन फल नहीं दे सकता। आचार्यश्री कहते हैं आज ध्यान सिखाने के केन्द्र तो खोले जा रहे हैं लेकिन ध्यान केन्द्रित नहीं किया जा रहा है - यह एक सोचनीय विषय है। कुछ लोग ध्यान लगाते हैं तो मात्र शरीर तक ही सीमित रह जाते हैं। या तो आरोग्य के लिए योग ध्यान करते हैं या दूसरों को सिखाने के लिए। जबकि, ध्यान का उद्देश्य है अपने तक (आत्मा में) आने के लिए।

     

    ध्यान पर शोध करने वाले किसी अध्येता ने आचार्य गुरुदेव से पूँछा कि-आप ध्यान में क्या अनुभव करते हैं, ध्यान से आपको क्या उपलब्ध होता है ? आचार्य भगवन् ने कहा - ध्यान से वर्तमान में आत्म संतुष्टि प्राप्त होती है, कर्म की निर्जरा भी होती है। यह हमें श्रद्धान है, यह श्रद्धानुभूति तृप्तिदायक होती है। ध्यान का कार्य ड्रायवर के समान है जो सभी व्रत नियम रूपी यात्रियों को मंजिल तक पहुँचाता है। ध्यान सब अनुष्ठानों का उपसंहार है।

     

    इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है कि-जीवन में ज्ञान के साथ-साथ ध्यान भी करना चाहिए तभी हमारी चर्या समीचीन मानी जावेगी। ध्यान/सामायिक के समय (सामायिक को छोड़कर) ज्ञानार्जन हेतु स्वाध्याय करने नहीं बैठना चाहिए। बल्कि, उस समय पंच परमेष्ठी का ध्यान या आत्मा का ध्यान करना चाहिए। ध्यान के बिना ज्ञान पचता नहीं, परिमार्जित होता नहीं एवं उसका समीचीन फल भी प्राप्त नहीं होता।

     

    आचार्य श्री ने अंत में कहा - ध्यान लगाने से एक काम बहुत अच्छा होता है कि स्वार्थ छूट जाता है। मेरी भावना में भी यही लिखा है - ‘‘स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या बिना खेद जो करते हैं, ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुःख समूह को हरते हैं।'' ज्ञान का अर्जन भी स्वार्थ के लिये नहीं परमार्थ के लिए होना चाहिए तभी वह कर्म निर्जरा का कारण एवं शांति का प्रदाता बन सकता है। अन्यथा, अभिमान ही उत्पन्न करेगा। किसी ने आचार्य भगवन् से पूँछा - आचार्य श्री सामायिक ध्यान में क्या करना चाहिए ? तब आचार्य भगवन्त ने कहा - सामायिक में तन-मन कब हिलता है यह देखो इसी का नाम ध्यान है।

     

    अब लगता है

    दर्पण ने,

    मेरे बालों में

    चाँदी लगा दी,

    कुछ पुरानी

    बातें याद दिला दीं

    कि तुमने चाँद सा

    जीवन पाकर

    अँधेरे में गंवा दिया

    गुजरे जीवन में

    किसी को

    चाँदनी न दी ....

    (अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, 06 अगस्त 2005)


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