कभी-कभी लोग अजीब सा प्रश्न कर बैठते हैं। इसमें या तो उनकी सत्य के प्रति अनभिज्ञता प्रदर्शित होती है या फिर अज्ञानता। लेकिन कभी-कभी अनभिज्ञ होने के कारण भी ऐसे प्रश्न उत्पन्न हो जाते हैं। दुनियाँ में असत्य ने सत्य का मुखौटा ओढ़ रखा है इसलिए कभी-कभी लोग सत्य को पहचानने में भी धोखा खा जाते हैं या सत्य पर सत्य जैसा यकीन खो बैठते हैं। कभी-कभी सत्यता जानकर लोगों को आश्चर्य भी लगता है। हाँ, ऐसा प्रायः होता ही है क्योंकि, जिस बालक ने कभी जीवन में मीठा दूध न पिया हो, उसे यदि पहली बार मीठा दूध पीने मिल जावे तो आश्चर्य सा लगता ही है, अभूतपूर्व घटना सी लगती ही है। कभी-कभी अपनी आँखों पर भी विश्वास नहीं होता कि -जो दिख रहा है, यह सच है या एक सपना मात्र। लेकिन, जब वह गहराई में पहुँचता है तो पाता है मैं सत्य के करीब खड़ा हूँ। इससे बड़ा और सत्य क्या हो सकता है।
किसी ने आकर पूज्य गुरुदेव से पूँछा - महाराज साब, आपका बैंक बैलेन्स कितना है? आचार्य श्री समझ गये कि ये जैनेतर बंधु हैं, सत्य से अनभिज्ञ है। आचार्य श्री ने कहा-बस ये पिच्छी और कमण्डलु। फिर उन्होंने दूसरा प्रश्न किया - लेकिन आपके नाम से जो दाल मिलें, ट्रक, बसें, फैक्ट्री, बैंक आदि चलती हैं, कुछ तो है ? आप बताते नहीं, यह बात अलग है। आचार्यश्री उस व्यक्ति की बात सुनकर हँसने लगे। कहा भाई - ये सब श्रावकों का काम है नाम किसी का भी लिख देते हैं, ये उनका विषय है। हमारे पास तो मात्र दो उपकरण रहते हैं - पिच्छी और कमण्डलु। यही बैंक बैलेन्स समझो, वह भी सामायिक के समय छूट जाते हैं। सच बात है - जिसके पास चेतन धन हो, देवता भी जिनके सेवक हों, उनसे बड़ा धनवान और कौन हो सकता है इस दुनियाँ में।
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी 29 जून 2005)