एक सज्जन ने गुरुदेव से पूँछा - गुरुदेव हम घर गृहस्थी में रहते हैं धर्म भी करते हैं। लेकिन शांति नहीं मिलती, संक्लेश बहुत हो जाता है। आचार्य श्रीजी यह सुन कुछ क्षण मौन रहे - फिर बोले जिसने अहित की सामग्री के साथ अनुबंध कर लिया है उसे क्लेश के अलावा और कुछ नहीं मिल सकता। जो पञ्चेन्द्रिय के विषयों में लगा है, ततूरी (गर्मी में तपी हुई जमीन) में भटक रहा है, उसे कभी भी शांति नहीं मिल सकती। शांति का रास्ता तो निरालम्ब होने पर प्राप्त होगा। पर में रहने वाला व्यक्ति हमेशा परास्त होता चला जाता है। उन्होंने पुन: कहा- नहीं गुरुदेव हम ज्यादा मोह नहीं रखते घर गृहस्थी से। तब आचार्य गुरुदेव ने कहा - बिना कारण के कार्य नहीं हुआ करता, ईंधन के बिना अग्नि नहीं रह सकती। अशांति और क्लेश मौजूद है तो इससे सिद्ध होता है कि कहीं न कहीं राग/अनुबंध विद्यमान है।
सच है संसार में संयोग ही दुःख का कारण है। यह प्राणी संसार में शरीर से और शरीराश्रित व्यक्तियों से/वस्तुओं से राग भाव को / संयोग को प्राप्त करके हमेशा दुःखी रहता है। ऐसा श्रद्धान रखने की प्रेरणा गुरु महाराज के श्रीमुख से प्राप्त होती है वे हमेशा निरालम्ब जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। वे धन्य हैं, हम सभी उनकी वाणी का आलम्बन पाकर निरालम्ब हो सकें। क्योंकि निरालम्ब हुये बिना संसार क्लेश से नहीं बचा जा सकता।
क्या था क्या हूँ क्या बनूँ, रे मन ! अब तो सोच।
वरना मरना वरण कर, बार - बार अफसोस।
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, 29.08.2005)