अमूल्य का अर्थ स्पष्ट है, जिसका कोई मूल्य नहीं आंका जा सकता उसे अमूल्य कहते हैं। अमूल्य वस्तु को पाना बहुत दुर्लभ होता है उसका समीचीन उपयोग कर पाना और ही दुर्लभ हुआ करता है। संसार में प्रत्येक वस्तु का मूल्य हो सकता है लेकिन जिनके माध्यम से संसार सागर से पार उतरने की कला सीखी जाती हो वह तो अमूल्य ही होता है देव-शास्त्र-गुरु हमारे आराध्य हैं और पूज्यनीय हैं। इसलिए वे हमारे लिए हमेशा अमूल्य ही हैं। जहाँ पर श्रद्धा जुड़ जाती है, अपनत्व होता है, वहाँ कीमत कोई वस्तु नहीं रह जाती है, वह अमूल्य हो जाता है। उनके सामने तो संसार की सारी संपत्ति तृण के समान प्रतीत होती है। आज शास्त्र (ग्रंथ) पर मूल्य/कीमत डाली जाती है जो कि शास्त्र का मूल्य कम कर देती है, अमूल्य जिनवाणी पर कभी भी मूल्य नहीं डालना चाहिए।
परम पूज्य आचार्य गुरुदेव ने एक दिन जिनवाणी की विनय कैसे करना चाहिए विषय को समझाते हुए कहा - कि जिसको हम पूज्य मानते हैं उसका व्यवसाय नहीं करना चाहिए।
"जिनवाणी पर मूल्य नहीं लिखा जाना चाहिए"।
जैसा माँ के प्रति बहुमान होता है, उससे भी ज्यादा बड़कर जिनवाणी माँ के प्रति आदर/बहुमान होना चाहिए। पूज्य गुरुदेव की इस बात से हमें यह शिक्षा लेना चाहिए कि, कभी-भी कोई भी पुस्तक हो, धार्मिक ग्रंथ हो उस पर मूल्य नहीं डालना चाहिए। कभी भी इन शास्त्र आदि उपकरणों का व्यवसाय नहीं करना चाहिए। श्रद्धा के साथ इनकी विनय करना चाहिए तभी हम इनसे समीचीन फल प्राप्त कर सकते हैं एवं अपनी श्रद्धा को सुरक्षित रख सकते है।
क्योंकि अमूल्य पर मूल्य डालना अमूल्य का मूल्य नहीं समझना है।
(10.01.2001, छपारा)
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