आज चला चली की दुनियां में चल सम्पत्ति का महत्व ज्यादा हो गया है, अचल सम्पत्ति की ओर किसी का ध्यान नहीं है। चल सम्पत्ति रूपया पैसा, मुद्राएँ मानी जाती हैं और अचल सम्पत्ति जमीन, मकान आदि मानी जाती है। पहले मंदिर जी के नाम से अचल संपत्ति रहती थी, हजारों एकड़ जमीन मंदिर की होती थी। अब ऐसा नहीं रह गया मात्र 2-5 लाख का बैंक वैलेन्स ही मिलता है।
परम पूज्य आचार्यश्री ने बताया कि पहले मंदिरों के नाम अचल सम्पत्ति हुआ करती थी। जैसे आज भी कुण्डलपुर क्षेत्र, बीनाजी क्षेत्र के नाम से अचल सम्पत्ति है। यही सम्पत्ति सही सम्पत्ति मानी जाती है इसे चोर आदि चुरा नहीं सकते। इस ओर आज समाज का ध्यान जाना चाहिये कि प्रत्येक मंदिर के नाम पर कुछ न कुछ अचल सम्पत्ति अवश्य होना चाहिए ताकि मंदिर के रख-रखाव की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके, इससे क्षेत्र आत्मनिर्भर हो जाते हैं किसी के सामने चंदा आदि उगाने नहीं जाना पड़ेगा।
(पथरिया पञ्चकल्याणक, 12 मार्च 2007)