आज का विज्ञान खोज की दिशा में बहुत आगे बढ़ गया है। लेकिन, वह मात्र जड़ की ही खोज कर पाया है। उसने शरीर में प्रत्येक नस-नस की खोज कर ली, कोई भी शरीर का अवयव उससे अछूता नहीं रह गया। लेकिन, शरीर के अंदर आत्मा नाम की कोई वस्तु है या नहीं, इसके बारे में वह मौन है। उसे वह नहीं खोज पाया। मात्र जड़ पदार्थों को ही विषय बना पाया है, क्योंकि प्रत्येक जड पदार्थ में रूप, रस, गंध, वर्ण और स्पर्श पाया जाता है। लेकिन, इन रूप, रस आदि से रहित उस आत्म तत्त्व को नहीं खोज पाया। क्योंकि, वह इन्द्रियों का विषय नहीं बनता। वह आत्म तत्त्व तो योगिगम्य है, योगी मुनिजन ही उसका अनुभव कर पाते हैं।
एक व्यक्ति ने गुरुदेव के श्री मुख से आत्मा की चर्चा सुनी और बाद में आचार्य भगवन् से पूँछा - हे गुरुदेव ! आत्मा को कैसे जाना/पाया जा सकता है ? यह प्रश्न सुनकर गुरुदेव ने दो प्रकार की पद्धतियाँ बतलाईं। आत्मा को जानने की पहली पद्धति है; नेगेटिव - वह यह है कि पाँच इन्द्रियों के द्वारा जो देखने में आ रहा है वह आत्मा नहीं है। शरीर सो आत्मा नहीं।
दूसरी पद्धति है; पॉजीटिव - वह यह है कि दिखने वाला आत्मा नहीं है बल्कि जो देख रहा है वह आत्मा है। यानि दिख रहा है शरीर, लेकिन देख रहा है शरीर के अंदर बैठा ‘आत्म तत्त्व'।
दर्पण देखना मत छोड़ो
लेकिन दर्पण में जो दिख रहा है।
वह मैं हैं ऐसा श्रद्धान रखना
छोड़ दो, क्योंकि तुम चेतन हो
जड़ नहीं हो।
(26 अप्रैल 2003)