एक बार एक सज्जन आचार्य गुरूदेव के दर्शन करके उनके समीप बैठ गये और गुरूदेव से निवेदन किया कि मुझे ऐसा कोई सूत्र दीजिए जिसके माध्यम से मैं स्व और पर के हित में कुछ कर सकूँ | आचार्य गुरूदेव ने कहा - क्या करना है यह नहीं बल्कि क्या नहीं करना है यह देख लो। क्योंकि कुछ करने में पुरूषार्थ की आवश्यकता होती है और कुछ न करने में पुरूषार्थ नहीं करना पड़ता। सज्जन बोले आचार्य श्री आप ही बता दीजिए क्या नहीं करना चाहिए। आचार्य श्री बोले - “जीवन में अभिमान मत करना। यह सुनकर सज्जन आश्चर्य भरे शब्दों में बोले - यह पालन करना तो बहुत बड़ा पहाड़ जैसा है यदि यह सूत्र पालन हो गया तो मुक्ति मिलने में देर नहीं लगेगी। आचार्य श्री बोले - सुनो! मन में भीतर से रूचि हो तो फिर कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। अहं (मैं) तक ही सीमित रहो। अहंकार मत करो, क्योंकि विनय को मोक्ष मार्ग में उपकरण के रूप में स्वीकारा है। विनयवान बनो।