आचार्य श्री जी वैराग्य की वृद्धि के लिए बारह भावनाओं के चिंतन करने का उपदेश दे रहे थे, उसी दौरान आचार्य श्री ने बताया कि - "वैराग्य उपावन माही का आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज अर्थ निकालते थे कि - वैराग्य के उपवन में जाने के लिए या वैराग्य के उपवन में बैठकर चिंतन करो बारह भावनाओं का। हमें हमेशा अपने वैराग्य को दृढ़ बनाते रहना चाहिए। व्रत, गाड़ी के समान हैं जो एक बार ली जाती है लेकिन बारह भावना, वैराग्य भावना, साधु-संगति एवं स्वाध्याय आदि यह सब पेट्रोल है, जो कि व्रत रूपी गाड़ी को आगे बढ़ाने में सहायक है। अतः इन्हें हमेशा भाते रहना चाहिए, तभी वैराग्य में स्थिरता एवं दृढ़ता और वृद्धि होगी।
किसी साधक ने आचार्य श्री के समक्ष शंका व्यक्त करते हुए कहा कि - कुछ लोग वैराग्य पथ पर बढ़ने वालों की मानसिकता बिगाड़ने का काम करते हैं उस समय क्या करना चाहिए? तब आचार्य भगवंत ने कहा कि - हाँ, मानसिकता बिगाड़ने के लिए लोग उपसर्ग जैसा कर सकते हैं, उन्होंने अपने बचपन का संस्मरण सुनाया कि जब हम कैरम खेलते थे तब सामने वाले हल्ला (तेज स्वर में आवाज) करके हमारा ध्यान खेल से हटाना चाहते थे, ताकि गोटी फिसल जाये और हमारी हार हो जाये, लेकिन हम उस ओर ध्यान ही नहीं देते थे। एक बात याद रखो - "जब हमारे पास आत्मविश्वास होता है तब हमें कोई भी अपने लक्ष्य, कार्य से डिगा नहीं सकता, इसी आत्मविश्वास का नाम ध्यान है।"