जिस प्रकार नदी पार करने के लिए नाव की आवश्यकता होती है उसी प्रकार संसार सागर से पार होने के लिए गुरु रूपी नाव की आवश्यकता होती है, गुरु को स्वीकार किये बिना आज तक किसी को मुक्ति नहीं मिली है। गुरुतत्व के माध्यम से ही हमारे आत्मा के रहस्यों का उद्घाटन हुआ करता है।
यह उस समय की बात है जब मैंने दोनों नावों को एक जगह पाया वह स्थान था तिलवारा घाट जबलपुर। जहाँ एक ओर नदी पार करने वाले नाव का सहारा ले रहे थे वहीं हम सभी मुनिराज गुरूवर की साक्षात् चरण छाँव में थे तभी आचार्य भगवन् से कहा - आचार्य श्री आज आधुनिकीकरण, खतरा बन गया है। कम्प्यूटर, टी.वी. आदि आधुनिक यंत्रों, वस्तुओं के माध्यम से बीमारियाँ फैल रहीं हैं। यह सब सुनकर दूर दृष्टि रखने वाले आचार्य गुरूदेव ने कहा - "आज नहीं तो कल इस विलासता का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ेगा, क्योंकि किये हुये कर्म का फल तो मिलता ही है, इसे भूलना नहीं चाहिए।"
आचार्य गुरूदेव आधुनिकता की दौड़ में दौड़ने वाले प्राणियों को हमेशा आगाह करते रहते हैं कि सात्विक जीवन जियो एवं सात्विक विचार रखो वरना भारतीय संस्कृति का लोप हो जावेगा फिर सुख और शांति भी लुप्त हो जावेगी।