रामटेक से छिंदवाड़ा की ओर विहार करते हुए चले जा रहे थे, धूप होने की वजह से रास्ते में बैठने के भाव हो रहे थे, लेकिन बहुत दूर-दूर तक कोई भी छायादार वृक्ष दिखाई नहीं दे रहा था। कुछ दूर और चलने पर देखा आचार्य श्री जी एक पेड़ के नीचे बैठे थे हम लोगों को देखकर आचार्य महाराज ने कहा आओ महाराज बैठ लो अब थोड़ा और चलना है। हम दोनों महाराज आचार्य महाराज के समीप जाकर बैठ गये जो साथ में महाराज थे उन्होंने कहा हम लोग अभी यही चर्चा कर रहे थे कि कितना चलना हो गया, आचार्य श्री तो कुछ आहार में लेते भी नहीं और इतना चलते भी हैं तो आचार्य महाराज हँसकर कहते हैं, "कुछ लेना ना देना मगन रहना।" हम तो तुम जवानों को देखकर चलते रहते हैं तो हम लोगों ने कहा हम आपको देखकर चलते रहते हैं।
फिर बोले बहुत देर बाद एक छायादार वृक्ष मिला। अब तो मानना होगा 1 वृक्ष 100 संतान के बराबर होता है। देखो कितने लोग इसकी छाया में बैठकर शांति का अनुभव कर रहे हैं। आज वृक्षों को काटकर नगर बसाये जा रहे हैं, लेकिन प्रकृति के बिना मानव सुरक्षित नहीं रह सकता। मानव को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।
मोक्षमार्ग की साधना चार प्रत्ययों में पूर्ण होती हैं, अज्ञान निवृत्ति, हान (विषय त्याग) उपादान (व्रत ग्रहण) एवं उपेक्षा (विकल्पों की शून्यता)।