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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • निमित्त

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    जिनेन्द्र वर्णी ने अन्त समय में आचार्य महाराज को अपना गुरु बनाकर उनके श्रीचरणों में समाधि के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था। सल्लेखना अभी प्रारम्भ नहीं हुई थी, इससे पहले ही एक दिन अचानक संघ सहित आचार्य महाराज बिना किसी से कुछ कहे ईसरी से नीमिया-घाट होकर पार्श्वनाथ टोंक की ओर वंदना करने के लिए निकल पड़े। सारा दिन वंदना में बीत गया, ईसरी आश्रम आते-आते शाम हो गई।

     

    चूँकि बिना किसी पूर्व सूचना के यह सब हुआ, इसलिए वर्णी जी दिन भर बहुत चिंतित रहे कि पता नहीं आचार्य महाराज कब लौटेंगे। जैसे ही ईसरी आश्रम में आचार्य महाराज लौटकर आए, वर्णी जी ने उनके चरणों में माथा रख दिया। आँखों में आँसू भर आए। अवरुद्ध कंठ से बोले कि- ‘महाराज आप मुझे बिना बताए अकेला छोड़कर चले गए। मन बहुत घबराया। मुझे तो अब आपका ही सहारा है। मेरे जीवन के अंतिम समय में अब सब आपको ही सँभालना है।'

     

    आचार्य महाराज क्षण भर को गम्भीर हो गए, फिर मुस्कुराकर बोले कि ‘वर्णी जी! सल्लेखना तो आत्माश्रित है। अपने भावों की संभाल आपको स्वयं करनी है। अपने उपादान को जाग्रत रखिए, मैं तो निमित्त मात्र हूँ।” इस तरह अपने प्रति समर्पित हर शिष्य को सँभालना, सहारा देना, संयम के प्रति जाग्रत रखना और निरन्तर आत्म-कल्याण की शिक्षा देते रहना, परन्तु स्वयं असम्पृक्त रहना, यह उनकी विशेषता है।

    ईसरी (१९८३)


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