मनुष्य जीवन दुख को छोड़ सुख को चाहने का काल लोगों ने जान रखा है। लेकिन सुख कहाँ है। ये नहीं जान पाने से दुख सारे जहाँ पर नजर आ रहा है।आचार्य ज्ञानसागरजी कहते थे—यह काल पंचमकाल के नाम से जाना जाता है। आगम ग्रन्थों में इसे दुखमा काल की संज्ञा प्राप्त है। सुख कहाँ है, लोग सुख चाहते हैं, क्योंकि इस काल में मुक्ति नहीं है, इसलिए वह वास्तविक सुख नहीं मिल पायेगा, जो सिद्धों को अनंत-सुख मिलता है। सुख जब भी मिलेगा मुनि बनने के बाद ही मिलेगा, उसे अविनश्वर सुख कहते हैं।
आचार्यश्री के श्री मुख से
१७.०८.२००४, शुक्रवार
तिलवाराघाट, जबलपुर