स्वाध्याय करने से यदि स्व की ओर दृष्टि चली जाती है तो स्व का ज्ञान होने में देर नहीं लगती। यही जीवन का सच्चा स्वाध्याय है। इसी बात को ध्यान में रखकर आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज कहते थे कि “बहुत ग्रन्थ पढ़ने की आवश्यकता नहीं बहुत बार पढ़ने की आवश्यकता है।'' बहुत ग्रन्थ पढ़ने से कोई विद्वान् नहीं होता बल्कि शब्दों के रहस्य को समझने से पाण्डित्य गुण प्राप्त होता है। इसलिए उन्होंने अपने जीवन में १०८ बार सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ को पढ़ा। जो उनके जीवन में सर्वसाधनों की सिद्धि का कारण बना। वे कहते थे कि हम जितनी बार ग्रन्थ का पाठ करेंगे या टीका ग्रन्थ पढ़ेंगे उतना ही हमारा मन (जीवन) पवित्र होता जायेगा। यह पूज्य ज्ञानसागरजी महाराज के जीवन दर्शन से सिद्ध होता है कि पवित्र जीवन वाले साधक के जीवन का उपसंहार किस तरह हुआ करता है।
३.५.९४ अमरकण्टक (जीवकाण्ड वाचना के अवसर पर)
३.६.९५ कुण्डलपुर, श्रुतपञ्चमी
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव