मुनियों के आचरण को बताने वाला मूलाचार ग्रन्थ, मूल । आराधना ग्रन्थ, आचारसार आदि हैं, इसी के अनुसार वे अपनी चर्या का पालन करते हैं। आज्ञाविचय धर्मध्यान के पालक मुनि हुआ करते हैं। आचारवान साधक दोषों के प्रति सचेतवान होकर चलता है इसलिए आचार्य ज्ञानसागरजी कभी लड़कियों से आहार नहीं लेते थे, क्योंकि वे आगम की आज्ञा का पालन नहीं करती थी इसलिए दान का अधिकार उनके हाथ से छूट गया था। आज भी मुनिधर्म की परंपरा में मासिकधर्म का पालन करने वाली महिलाओं से आहार लेने का निषेध है। आचार्य विद्यासागरजी अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते नजर आते हैं। लड़कियों से आहार तो लेते हैं, लेकिन उन लड़कियों से जो मासिक धर्म का पालन करती हैं।
आचार्यश्री के श्री मुख से
२४.०८.२००५, मंगलवार
षट्खण्डागम पुस्तक २ बीना बारह, सागर (मध्यप्रदेश)