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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मैं प्रचारक नहीं साधक हूँ

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    साधना ही जीवन का सच्चा प्रचार है, इसी से नहीं चाहते हुए भी प्रभावना होती चली जाती है। अपनी भावना भी परिपक्व बनी रहती है। अपने काम से मतलब रखने वाला समय का सदुपयोग करने वाला अप्रभावना से बचा रहता है।

    आचार्य ज्ञानसागरजी हमेशा लघुता को प्रकट करते हुए यही गुनगुनाते, गीत गाते, बोलचाल की भाषा में कहते रहते थे मैं प्रचारक नहीं हूँ, साधक हूँ, साधना ही हमारा धर्म है। मैं कभी प्रभावना नहीं चाहता, लेकिन अप्रभावना से बचना चाहता हूँ। नीतिकार कहते हैं-यही सबसे बड़ी प्रभावना है कि अप्रभावना को नहीं चाहना। उनके उम्र भर की समीचीन चर्या ही प्रभावना का कारण बन पड़ी और वे यह भी कहते थे हम अप्रभावक नहीं प्रभावक ही बने।

    आचार्यश्री जी के श्री मुख से

    १४.०३.२००५, सोमवार

    धवला पहली पुस्तक वाचना कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)


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