शिशु की पवित्र वर्गणाओं का प्रभाव
जननी की देह पर
स्पष्ट दिखने लगा
कल की कमनीयता को
बढ़ाने लगा,
तनय की तन-रश्मियाँ
माँ के तन पर कांति
बिखेरने लगीं
जैसे सूर्य की किरणें
नूतन मेघ पर बिखर गई हों,
परिवार में कुशल क्षेम का वातावरण
छा गया,
जनक सोचने लगे
आखिर कौन पुण्यात्मा गर्भ में आ गया।
तभी दंपत्ति चल पड़े
अक्किवाट की ओर...
लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व यहाँ चिन्मयचेता मोहजेता
“भट्टारक मुनि विद्यासागर” नामक
महान साधक ने
सल्लेखना ले
भेदज्ञान पूर्वक
समाधि ग्रहण की थी।
हाथ जुड़ गये, शीश झुक गया
अनायास दोनों के मुख से शब्द फूट पड़े
हे मुनिवर! यदि प्रसव सुखपूर्वक हो गया।
तो बालक को यहाँ लायेंगे
और एक स्वर्ण का दीपक अवश्य जलायेंगे।
उन्हें यह अज्ञात रहस्य
कहाँ ज्ञात था कि
यह दीपक तो बुझ जायेगा,
मगर होनहार बालक
ज्ञान का सागर बन
अपने चेतन गृह में
अनबुझ विद्या का दीप जलायेगा,
जिसकी लौ के संपर्क से
अनेकों दीप जलते रहेंगे
सदियों-सदियों तक...
और
घटाटोप मिथ्यातम छँटकर
प्रकाश बढ़ता ही जायेगा
जिनशासन का प्रवाह
और गतिमान होता ही जायेगा।