आज हो गया एक वर्ष का
नूतन परिधान में
ललाट पर तिलक लगाये
दिख रहा है सुंदर
नन्हा-सा राजकुंवर...
उसके चाँदी से भी
उज्ज्वल धवल रंग को देख
अपना उपहास मान
लज्जित हुई-सी
रजत की करधनी
कमर में लटकती
नीचे की ओर
और...
खिसकती जा रही…
पिता ने ज्यों ही
मंदिर में जाकर
अपने हाथों से उतारा
चलने लगा
वेदी की तरफ
सस्मित हो,
पायल की रुन-झुन सुन
देखा लोगों ने
उसके रूप लावण्य को
विस्मित हो,
कुछ पल तो उनकी
मति विस्मित-सी हो गई
यह छोटा-सा ‘लौकान्तिक देव’
आया है कहाँ से!
तभी ‘मल्लप्पा जी’ ने कहा-
बेटा! बोलो ‘जय’
सुनते ही बोले
‘त्यै’ अर्थात्
आज से हो गया तय
मोह पर पाना है विजय।
घूँघट में छिपा
यह रहस्य
ज्ञात किसे था,
किंतु अनजाना कुछ भी
रह सकता है कैसे
मुझ ज्ञानधारा से...।