आध्यात्मिक संत पुरूष की
प्रत्येक क्रिया लगती है।
ऋषियों की चर्या-सी
शब्दावलियाँ लगती हैं।
अनहद नाद-सी
विचारधारा लगती है
मंद सुगंधित बहती मलयानिल-सी
आशु कवि-सा मिलता है उत्तर गुरू से
वह भी अक्षरशः सटीक,
सज्जन ने प्रश्न पूछा आकर समीप
मुझे किसी ने दिया है यंत्र
कहा है उसने ‘रखना अपने घर’
अच्छे से सँभालकर,
मैं कुछ जानता नहीं
आपकी आज्ञा बिन कुछ करना चाहता नहीं
गुरुवर! मुझे समझाइये
अबोध पर कृपा कीजिये!
सहज भाव से कहा गुरु ने
“घबराओ मत!
घर में यंत्र रखो या न रखो।
महत्त्वपूर्ण नहीं इतना,
किंतु निज घट में महामंत्र को
अवश्य रखना।"
संशयहरणी जन-जन कल्याणी
करूणा पूरित गुरु-वाणी
सज्जन ने उतार ली
अपने हृदय में...
जिनकी चर्चा औ चर्या में
जीवन और जिह्वा में
कथनी और करनी में
अंतर नहीं किञ्चित्,
तभी तो देवता स्वयं रक्षा करते इनके वचनों की
सत्य घटना है यह
बात नहीं है सपनों की।