व्यस्त रहकर भी
प्राणी मात्र का ध्यान रखते
अपने में लीन रहकर भी
भक्त की भावना समझ लेते
हज़ारों के हाथ में जाकर भी
दो हज़ार का नोट
टिकाये रखता है अपना मूल्य,
संतात्मा अनेकों को जानते हुए भी
बनाये रखते हैं निज का बोध।
एक सज्जन सोचकर गया घर से
पूछूंगा पाँचों प्रश्न गुरुवर से
पर, पूछ नहीं पाया डर के मारे...
कमाल तो यह हुआ कि पूछे बिना ही
कक्षा में समाधान मिल गये सारे...
मान गया वह
अंतःकरण की बात गुरू जान लेते सब।
नौकरी पेशे वाला भक्त
दिन हो गये अट्ठाईस
हुआ नहीं आहार अभी तक
पुत्र को देने जाना है परीक्षा दो दिन बाद
क्यों नहीं पधारे गुरु महाराज ?
बेटे को हो रही आकुलता
पिता ने किया आश्वस्त...
अश्रु न बहाओ मेरे लाल!
दयालु गुरूवर पढ़ लेते मन के भाव
अवश्य आयेंगे हमारे द्वार
एक-एक पल लग रहा सागर-सा
परिवार सारा जाप कर रहा गुरू-नाम का
मन में विचार हैं
टंकी में भरे जल के समान,
वचन में आने वाले शब्द हैं
नल के समान,
और तन में प्रगट आचरण है
जल से भरे बर्तन के समान।
यदि मन से की है अर्चना
आराध्य की आराधना
तो फलीभूत होती है अवश्य।
दूसरे ही दिन वेला थी पड़गाहन की
प्रतीक्षा थी गुरु के आगमन की
लो!
“भाव ही भव का मूल है
भाव ही भव का कूल है”
पंक्तियाँ यह सार्थक होती-सी
सारा परिवार खड़ा है पड़गाहने
हृदय में विश्वास मन में है पूरी आस
जैसे-जैसे चरण आगे बढ़ते गये
अन्य लोग अपने भाग्य को कोसते रहे...
ज्यों ही कदमों की गति हुई धीमी
हर्षाश्रु से आँखें हुईं गीली
भवों-भवों का अतिशय पुण्य आ गया उदय में
चरण रुक गये आकर सामने...
खुशी का पारावार न रहा;
क्योंकि गुरु ने हृदय-पृष्ठ को पढ़ लिया
अनकहे ही अंतर्भावों को
संत ने सुन लिया।
विधिपूर्वक आहार देकर
अंत में गुरूवर का आशीष पाकर
शांत छवि को हृदय में बसाकर
कर दिया प्रयाण अपने नगर की ओर…
वाहन से आ पाये कुछ ही दूरी पर
कि सामने से गाड़ी से हो गई जोर से टक्कर...
सभी के मुख से निकली एकसाथ
“जय हो श्री विद्यासागर जी महाराज”
तीन-चार पलटी खाकर गाड़ी रूक गई।
जहाँ थी गहरी खाई
भक्त डूबा था गुरू-भक्ति में
अचानक गुरु ने दर्शन दिये उसे
किरणे निकलती हुईं आशीष की मुद्रा में।
अदभुत करिश्मा हुआ!
किसी को खरोंच तक नहीं आई
गुरु-नाम की शक्ति ने
सबको बचा लिया,
आहारदान के प्रभाव से
सभी ने नवजीवन पाया,
संकट टला तो सारा परिवार
पुनः गुरू-दर्शन को आया।