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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 10

       (0 reviews)

    शनि लग्न में होने से

    दृढ़ निश्चयी

    महान त्यागी

    हृष्ट-पुष्ट शरीर का योग रहेगा

    साथ ही

    तृतीय तथा एकादश भाव में

    सूर्य और राहु के

    पावन योग में होने से

    जातक होगा संयमी और बुद्धिमान

    तार्किक और प्रतिष्ठावान।

     

    किंतु शनि की प्रबलता से

    वस्त्रहीन दिगम्बर मुनि होने का

    योग लेकर जन्मा है,

    अपनी बंद मुट्टियों में

    अंतर आत्म वैभव

     

    और

    नाजुक लाल पगतलियों में

    जग का जड़-वैभव

    ठुकराने की

    क्षमता लेकर आया है।

     

    अनसुने अनजाने गाँव सदलगा को

    पहचान देगा एक दिन

    समूचे जगत में

    गाँव का नाम रोशन करेगा

    एक दिन

    कौन जानता था इसे?

     

    देखते ही बोल पड़ी

    तुमको पाकर

    आज फिर

    माँ होने का गौरव

    मुझे अति आनंद दे रहा है

    जो इतना पहले नहीं था।

     

    अदभुत हैं प्रकृति के कृत्य

    लगते हैं दृश्यमान

    पर हैं अदृश्य...

    कहाँ पढ़ पाती हैं

    सामान्य मानव की आँखें

    इसकी अदृश्य लिपि को!

    कहाँ समझ पाता है

    इसके अबूझ संकेतों को!

    मानव मेधा के वश की

    बात ही नहीं यह।

     

    अक्किवाट के

    भट्टारक मुनि विद्यासागर जी का

    श्रद्धा से स्मरण कर

    ज्यों ही पहली बार पुकारा

    माँ ने बड़े प्यार से-

    बेटा विद्याधर!

    बड़ी-बड़ी आँखों से

    निहारता रहा,

    मानो कह रहा हो

    विद्यासागर ही

    कह दो ना एक बार...।

     

    दिन पर दिन बीतने लगे

    लो, आ गया प्रथम बार

    जिन दर्शन करने का अवसर..

    शिशु को नवीन वस्त्र पहनाकर

    किया माँ ने तैयार

    ऐसा लगने लगा

    मानो बाल कामदेव हो,

    घुँघराले बाल, लाल अधर

    नपा तुला देह संस्थान

    जगत की सारी रूप राशि

    इसके सामने फीकी पड़ गई,

    मंदिर जाते-जाते

    हर महिला ने अपने हाथों में लिया

    और अंत में श्रीमंति की प्रिय सखी

    ‘पद्मा’ चुप न रह पाई...

     

    बोल ही पड़ी...

    कई जन्मों का एक साथ

    पुण्य उदय में आया है

    पूर्व जन्म की तपस्या का फल पाया है,

    तभी तो तूने

    'बाहुबली'- सा लाल पाया है।

     

    इसी वार्तालाप में

    ज्यों ही पहुँचे मंदिर

    ‘विद्याधर’ माँ के हाथों से

    फिसलने लगा,

    धरती पर लिटाते ही

    प्रभु की ओर मुख कर लिया,
    सीधी दृष्टि पड़ी प्रभु पर

    मानो कोई पूर्व भव की

    स्मृति छलक आई

    सो नयन विस्फारित कर

    मुस्कान उभर आयी अधर पर

    सभी नारियों का मन

    आश्चर्य से भर गया...।

     

    यह कोई सामान्य नहीं  

    होनहार व्यक्तित्व का धनी है,

    तभी तो शांत होकर

    इसने ‘णमोकार मंत्र'

    की ध्वनि सुनी है।

    इस तरह...

    जन-जन का मन

     

    प्रफुल्लित करता वह

    ‘पीलू’ कहलाने लगा।

     

    देह की धवलता

    चेहरे की सरलता

    अदभुत सौन्दर्य के साथ

    पैर का अँगूठा चूसने का

    पराक्रम दिखाना

    लोगों के मन भा गया,

    आबाल वृद्ध उसे छूने को

    मचल गया।

     

    इस तरह...

    जन्म की खुशियाँ

    मल्लप्पाजी के आँगन में
    सावन की बूंदों की तरह

    बरस कर हृदय को

    आह्लादित करने लगीं।

     

    चार माह के पीलू को

    मंदिर ले गयी माँ

    तभी

    उसने दिखाया अजब करिश्मा

    लेटा-लेटा

    उस दिन,

    नन्हें-नन्हें

    दो नाजुक हाथों को

    समानता से जोड़कर

    उल्टा हो गया,

    झुका लिया सिर

     

    मानो कर रहा हो

    प्रभु की उपासना

     

    निकट भविष्य में

    होने वाला था जो
    सबका उपास्य...

    दे रहा था

    जग को जीवंत संदेश

    कि

    जिन पद में

    झुके बिना

    सिद्धालय तक

    पहुँचा नहीं जाता।

     

    स्वात्म विरह के दुख का

    अनुभव ही

    अनंत सुख तक पहुँचाता है

    पर से विमुख हो दृष्टि

    तभी तो

    निज का अनुभव आता है।


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