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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आर्यिका पूर्णमति माताजी संस्मरण

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    Sambhav Jain

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                    *?संस्मरण?*

         ?आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी?
         
        *गुरुणांगुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी निज प्रज्ञा से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के रूप में संसार को एक अनमोल चिंतामणि रत्न प्रदान किया है,जो रत्न युगों-युगों तक चमकेगा।* उसी प्रकार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अनेकों  रत्नों को खोजकर उनमें स्वयं के समान *ज्ञान और चारित्र* की स्थापना की है। वह दूर रहकर भी अपने शिष्यों का सदा ध्यान रखते है।
            बात उस समय की है,जब *आर्यिका पूर्णमति माताजी ससंघ का दक्षिण भारत में विहार चल रहा था।* विहार करते-करते रात होने वाली थी।पर कही भी रुकने को स्थान नहीं मिला।निर्जन वन था और चारो तरह से साँय-साँय की आवाजें आ रही थी।और कोई भी श्रावक-श्राविका साथ में नहीं थे।तब माताजी ने अपने हृदय देवता पूज्य गुरुदेव को नमोस्तु किया और कहा- *हे गुरुदेव!आप ही हमारे प्राणों के प्राण हो।हमारी रक्षा करिये।आपके सिवा और कोई सहारा नहीं है हमारा।*
        तभी अचानक से एक श्वेत वस्त्रधारी,9-10 फीट लम्बा,गौरे रंग का,चौड़ा ललाट,घुंघराले बाल वाले व्यक्ति को देखकर सभी आर्यिकाएँ को आश्चर्य हुआ।
    उस व्यक्ति ने कहा- *बहन जी! लगता है आप किसी परेशानी में हो नि:संकोच होकर बताइए मुझे,जिससे मैं आप आपकी सेवा कर सकूं।*
    कर्नाटक राज्य में इतनी शुद्ध हिंदी बोलने वाला देखने मे सज्जन लग रहा था,जैसे राजस्थान का निवासी हो।माताजी ने उससे कहा- *हम सभी आर्यिकाएँ है, साध्वी हैं।हम रात में चलते नहीं।क्या यहां पर कहीं ठहरने का स्थान है?*
     उस व्यक्ति ने थोड़ा विचार करके कहा- हाँ, हाँ यही पास में भगवान का मंदिर है।आप मुझ पर विश्वास करके मेरे साथ चलिए।
     50 कदम चलकर मंदिर आ गया।मंदिर सुंदर था,चौड़ी ढलान थी।वहां पर ना कोई व्यक्ति था,न ही भगवान थे।जाते-जाते वह व्यक्ति कहने लगा-आपके रुकने के लिए यह स्थान सुरक्षित है यदि कुछ आवश्यकता हो तो मुझे बता दीजिएगा।इतना कहकर वह अदृश्य हो गया।सभी उस व्यक्ति को ढूंढते रह गए क्योंकि यदि जरूरत हुई तो उसे कैसे बुलाएंगे?
    गुरु नाम का जाप करते-करते रात्रि व्यतीत हो गई और अगले दिन सुबह देखा तो दूर-दूर तक कोई घर नहीं दिखा। *निश्चित ही वह कोई देवता था,कोई सामान्य मनुष्य नहीं था।* जो संकट में सहायता करने आया था।सम्यक चारित्र का पालन करने वाले मोक्षमार्गी पथिक की देव भी सेवा करने आते है। 
    इस प्रकार जो दूर रहकर भी अपने शिष्यों का सदा ध्यान रखते हैं ऐसे जीवनदाता गुरु चरणों में अनंत बार नमोस्तु..... 
         वह एक ऐसे संत हैं जो जुबाँ  से नहीं जीवन से उपदेश देते हैं शब्दों से नहीं, साधना से समझाते हैं इसलिए शिष्य को शीघ्र समझ में आ जाता है।।

    *? ज्ञानधारा से साभार?*
    *✍? आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?*

      *?प्रस्तुति-* नरेन्द्र जैन जबेरा?
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