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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आर्यिका पूर्णमति माताजी संस्मरण

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    Sambhav Jain

    ?❄☀?
                     *संस्मरण*
                       ?☀❄?

        *?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?*

     *दुर्लभ गुरुमुख से वचन,दुर्लभ गुरु मुस्कान।*
    दुर्लभ उठना गुरु नज़र,दुर्लभ सिर पर हाथ।।
    *दुर्लभ गुरु संकेत है,दुर्लभ व्रत  पालन।*
    दुर्लभतम गुरु चरण में,है समाधि धारण।।

    *?भूमिका?-* गुरु चरणों को पावन समझता है शिष्य।गुरु की हर आज्ञा का पालन करने में वह अपना सौभाग्य समझता है।वह गुरु-चरणों मे इसलिये समर्पण नहीं करता जिससे गुरु मेरे हो जाये,अपितु मेरा समग्र जीवन गुरु के नाम हो जाये।शिष्य गुरु के आचरण से प्रभावित होता है। *गुरु की कठोर से कठोर आज्ञा को पालने में डरता नहीं है।चाहे मरण भी क्यों न आ जाये।प्राण जाए पर गुरु आज्ञा का पालन जीवन की अंतिम श्वांस तक करता है।*
    *?प्रसंग?-*
          बात आर्यिका माँ 105 पूर्णमति माताजी के दक्षिण भारत विहार के समय की है।माताजी मध्यप्रदेश से बहुत दूर केरल की सीमा पर थी।माताजी का स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब था। *1 km भी नहीं चल पा रही थी,शरीर की स्थिति बिल्कुल अस्वस्थ थी।*
    आचार्य श्री जी के पास बात पहुँची,गुरुदेव ने कहा- *आ जाओ वापिश मध्यप्रदेश।*
    उस समय माताजी मध्यप्रदेश से 2000 km दूर थी।सबको आश्चर्य हो रहा था,कैसे 2000 km का विहार करेगी।और माताजी को 1 km चलने पर भी परेशानी हो रही है।
    तभी माताजी ने कहा- *"जिन्होंने संकेत दिया है,उन्होंने साथ मे शक्ति भी भेजी है गमन करने की।"*
    लोग फिर भी चिंतित हो रहे थे।
             माताजी ने फिर कहा- *"चिंता मत करो,गुरु महिमा का चिंतन करो।"*
            और माताजी ने विहार कर दिया।आश्चर्य की बात तो यह थी कि- *पहले ही दिन माताजी ने बिना रुके 19 km विहार किया।* जहाँ 1 km नहीं चल पा रही थी,वही 19 km एक दिन में विहार कर लिया।सभी दर्शकगण कहने लगे- *गुरु-शिष्य का ऐसा अनोखा रिश्ता कहीं नहीं देखा।*
    फिर माताजी अपने मन मे गुरु भक्ति संजोय, *गुरुआज्ञा ही जीवन* इस सूत्र को ध्यान में रखते हुए 2000 km विहार करके मध्यप्रदेश वापिश आ गयी।
    ये तो *गुरुदेव का आशीष* था,जो माताजी को ऐसी अस्वस्थता में भी इतना लंबा विहार करवाया दिया।और माताजी का अपने जीवनदाता *गुरुदेव के प्रति अटूट समर्पण,गुरुभक्ति का परिणाम।*
              शिष्य अपने गुरु की आज्ञा को सर्वोपरि मानता है।वह कहता है- *?प्राण चले जाएं लेकिन गुरु आज्ञा का उल्लंघन कदापि नहीं कर सकते।?
             क्योंकि वह जानता है- *गुरु के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं।समंदर के बिना लहर का सत्व नहीं।* गुरु रह सकते है शिष्य के बिना,पर शिष्य कैसे रह सकता है गुरु के बिना।गुरु में ही शिष्य के प्राण बसते है।
    शिष्य दिन-रात यही भावना भाता रहता है-
    *धन्य धन्य संत समागम,गुरुचरणों का हो।*
    *णमोकार को जपते-जपते,मरण महोसत्व हो।।*

    *?ज्ञानधारा से साभार?*
    *✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?*
    ?प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा?

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