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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • १५. सुचरित्र तपोनिधि

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    ‘सु' शब्द शुभ का वाचक है। शुभकार्य ही चारित्र की आधारशिला होती है। यह पुण्य आत्मा का उद्धारक तत्त्व है, जो तप की साधना से प्राप्त होता है। ठण्ड, गर्मी, वर्षा इन तीनों ऋतुओं में तप की साधना करना, शीत ऋतु में कमरे दालान, सीढ़ियों के नीचे शयन करना। ग्रीष्म ऋतु में कमरे के अन्दर शयन करना या ध्यान करना, वर्षा ऋतु में भी कभी कुण्डलपुर की पहाड़ियों पर, कभी अमरकंटक के जंगल में चातुर्मास करना। कभी गर्मी के दिनों में शिलाओं पर बैठकर आतापनयोग करना। फल और रसों का परित्याग कर नीरस भोजन कर ग्रहण करना, जिसमें न नमक है, न मीठा है, न कोई सब्जी है। ऐसी कठोर तप साधना ही तपन को शीतल बनाती चली जाती है और शीत में ऊष्म बनाती चलती है। जंगल में मंगल वातावरण का प्रभाव बढ़ाते चलते हैं, तप के प्रभाव से भीड़ का कभी अभाव नहीं होता क्योंकि भीड़ से दूर रहते हैं इसलिए भीड़ उनके करीब होती है और जो लोग भीड़ के करीब होते हैं, उनसे दूर होती है। गुरुदेव इन ५० वर्षों में मंच से दूर रहे, इसलिए प्रपंच से बचे रहे और ऐसे जिनवाणी सेवक पंडित कैलाशचन्द्र वाराणसी जो मुनियों को नहीं मानते थे, तप साधना के प्रभाव से आचार्य विद्यासागर के दर्शन कर णमोकार मंत्र में णमो लोए सव्वसाहूणं जपते ही आचार्यश्री का दर्शन उन्हें सहज होता रहा, यह सम्यक्त्व चारित्र गुण के कारण ही इस जगत् में विपरीत मत बुद्धि वालों में सम्यग्ज्ञान की ध्वनि भरने वाले गुरुदेव तम प्रलयंकर विद्यासागर की उपाधि को प्राप्त हुए। अन्धकार को दूर करने वाले गुरुदेव जयवन्त हो।


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