शासन पर के ऊपर नहीं स्व के ऊपर किया जाता है। इन्द्रियों को अपनी आत्मा के बस में करने वाला जिनशासक हुआ करता है। वह अपनी आत्मा को विभिन्न प्रकार के गुणों से आच्छादित करता हुआ परीषह विजय करता हुआ कष्ट के दिनों में भी साम्यभाव में जीना सुख दुख वैरी बंधु में साम्यदृष्टि रखना, ऐसे गुणों की परम्परा का निर्वाह करने वाला जिनशासक का वह दीपक होता है, जो पर के नहीं बल्कि अपने सहारे चला करता है, जो स्वाश्रित जीवन जीने वाला दुनियाँ का प्रकाश पुंज बनता चला जाता है। दीपक के तल में अंधेरा हो सकता है पर जिनेन्द्र गुणों से आच्छादित जीवन के तल में भी, अंदर भी बाहर भी चारों दिशाओं में प्रकाश ही प्रकाश है, जो आत्मा का हित चाहता है, वो प्रकाश के घेरे में आकर इन्द्रियों पर लगाम लगाने की कला से लेकर आत्म अनुभव की निज सम्पत्ति के सम्पादन में अपने आपको समर्पित करता चला जाता है। ऐसे उस दीपक पुंज की बात कही जा रही है, जो विद्या और ज्ञान आत्मा और शरीर के विज्ञान से महिमा मण्डित गुणों की मणियों से परिपूरित आचार्य गुरुदेव ५० वर्षों में जिनशासन की प्रभावनाओं की ध्वजा पहरा कर बुंदेलखण्ड की माटी को जिनशासनमय बनाकर मिथ्यात्व, मायाचार, छल-कपट के टुकड़े करने वाले प्रसिद्ध देदीप्यमान साधक सिद्ध हुए हैं।