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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ५. इच्छा रहित जीवन शैली

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    आचार्यों ने इच्छा निरोधो तपः सूत्र दिया। यह सूत्र ही साधक की साधना शैली का आधार हुआ करता है। इच्छा ही संसार को वृद्धि प्रदान करने वाला अवगुण है। इच्छा से रहित भाव प्रणाली की संहिता ही आत्म साधक का गुण होता है। यह इच्छा रहित तप उसके समग्र जीवन में चलता रहता है। प्रायश्चित में पूर्वाचार्यों ने तप को प्रदान करने के संकेत दिए हुए हैं। इसी आधार पर तपमय जीवन जीने वाला बिना कामना के निष्काम योगियों की श्रेणी में खड़ा होकर प्रात:काल की वंदना में अपना स्थान बना लेता है। इच्छा एक नहीं होती, अनंत होती है। एक की पूर्ति होने पर, दूसरी को जन्म लेने में देर नहीं लगती है। योगी इच्छा के जन्म लेने के स्वभाव को जानते हैं इसलिए वे इच्छा निरोध की जीवन राह को सहज, सरल, स्वाभाविक ढंग से जीने का अभ्यास बनाकर रसपरित्यागमय कार्यशैली को स्थान प्रदान करते हैं। कभी नमक, कभी मीठा, कभी दूध, कभी फल, कभी सब्जी, कभी घी, न कोई ओढ़ना, न कोई बिछौना। इस प्रकार की इच्छा रहित जीवन शैली के ५० वर्ष पूर्ण कर गुरुदेव की देह, नीरस भोजन से भी कंचनमय प्रकट हुई जानकर पड़ रही है। इत्यादि के त्याग की जीवनशैली बनाकर चल रहे हैं।


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