Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ९७. ज्ञान और शील सम्पन्न

       (0 reviews)

    सोने पे सुहागा वाली कहावत के अनुसार चलने वाले शील सम्पन्न आचार्य ज्ञान की धरोहर से सम्पन्न होते हुए इस सूक्ति को चरितार्थ करते हुए नजर आ रहते हैं। शील और ज्ञान का जोड़ा सदियों से प्राचीन ऋषियों मुनियों की परम्परा से चला आ रहा है। उसी परम्परा को प्रवाहमान करने वाले आचार्य विद्यासागरजी महाराज हमेशा शील के लिए मनवचन-काय तीनों की एकता के बल से पालन करते हुए, पालन करवाते हुए ये ही ध्यान रखते हैं। शील के शिथिल होने पर ज्ञान की कोई कीमत नहीं होती है। सम्यग्ज्ञान जब भी फलेगा-फूलेगा सम्यक्चारित्र शीलव्रत से समाहित होकर ही फलेगा। वही ज्ञान सुगन्धी का भण्डार बन जाता है। गुरुदेव के ज्ञान की ध्वनि ने शील की दृढ़ता ने ही युवाओं में शील की ओर झुकने के लिए रुझान पैदा किया और सम्यग्ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वैराग्य के भावों से भरकर वासना से भरे युग में अतिशय उत्पन्न कर ज्ञानमय जिनवाणी का अपनी वाणी के द्वारा रसपान कराकर अश्लील वृत्तियों पर रोक लगाकर शीलमय वाणी की ओर अग्रसर किया। मुख से विनयाचार की भाषा का प्रचलन बढ़ाकर विनयशील प्रवृत्ति का अंकुरारोपण कर जैन संस्कृति को ज्ञान और शील, सत्य और अहिंसा की परिपाटी से बाँधकर उस ध्वंस होने वाली परम्परा को ध्वजा के समान फहराकर जैनध्वज की रक्षा का बीड़ा उठाकर आत्महित का सम्पादन करते हुए, करवाते हुए समाज में लुप्त हो रही स्वदारसंतोष व्रत की धारा को पुनः जीवित कर गृहस्थ श्रावकों को स्वदारसंतोष व्रत से अलंकृत किया। १८ हजार शील के दोषों पर दृष्टि रखना ही ज्ञान की बलिहारी हुआ करती है। आज भले ही ११ अंग, १४ पूर्व का ज्ञान न हो पर अंशमात्र के ज्ञान से चारित्र की दृढ़ पालना में सहयोग की भाँति सहायक होता हुआ नजर आता है। ज्ञान ही आत्मध्यान के लिये सहयोगी कारण बनता है। भले बाद में सब अपने आप छूट जाता है। इन ५० वर्षों में गुरुदेव ने शील और ज्ञान की सुगन्धी से जैन समाज, जैनेतर समाज को आकर्षित किया है।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...