छोटी वय में
छोटा सा निमित्त पा
निज योग्यता जागृत करना
अनहोनी-सी बात है
मानो
भव-भव के संस्कारों के
महापुरुषार्थ ने
जग को दे दी-जग ने दी थीं जो निधियाँ
और
निकल पड़े अन्तर्यात्रा पर
अनन्त की यात्रा पर
ज्ञान के सागर में ठहराव हुआ-गोता लगाया
दिन-रात लुटाया करते हैं अब
सम-शम की अविनश्वर मणियाँ…
ऐसे अन्तर्यात्री दानवीर गोताकार
विद्यासागर के निर्माता
गुरुनागुरु-दादा गुरु को
समर्पित है
निज में समर्पित
चेतन कृति के
पूर्व अध्याय स्वरूप
उनकी अपनी महाकृति