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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रस्तुति

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    भारतवर्ष में अनेक ऋषि-मुनि-आचार्य-तीर्थंकर-महापुरुष बनने वाली आत्माओं ने जन्म लिया है किन्तु महापुरुषत्व जन्मता नहीं कर्मणा प्रगट होता है। जो जनहितार्थ में किए गए श्रेष्ठतम कार्यों से प्रगट होता है। जो स्वयं के जीवन के साथ-साथ प्राणीमात्र को जीवन जीने में सहयोग करता है। प्राणी मात्र के जीवन की वेदना को अपनी वेदना मानकर उनकी वेदना को दूर करने का पुरुषार्थ करता है एवं उन्हें सुख-शान्ति का मार्ग चलकर दिखाता है ऐसे परहित में निस्वार्थ भाव से सर्वस्व अर्पण कर देने वाले व्यक्तित्व को महापुरुष कहते हैं। महापुरुष के साथ यदि संतत्व जुडा हो तो सोने में सुहागा की उक्ति चरितार्थ हो जाती है। ऐसा ही दुर्लभ संयोग आज’ अपराजेय साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी' के रूप में देखने को मिल रहा है।

     

    जिनके आदर्श स्वरूप में ऐसा प्रसाद गुण है कि दर्शक आनन्द विभोर हो उठते हैं। एक झलक पाकर कृतकृत्यता का अनुभव करते हैं ।अरिहन्तों की अजेय परम्परा के सूत्रधार, मानवता के आदर्शों को स्थापित करने वाले ‘महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी के जीवन से जुड़े पहलुओं एवं पल-पल परिवर्तन के अनुभवों को जानने की जिज्ञासा किसे नहीं होगी...? जिज्ञासा की इसी कड़ी में स्मृतिकोश पूज्य मुनिवर श्री योगसागर जी महाराज से गुरु संघ प्रवास में प्राप्त हुए समाधानों ने जिज्ञासा की प्यास और बढ़ा दी। सुयोग से गुरु आज्ञा ने मेरे गुरु की दीक्षास्थली अजमेर के जिनायतनों का दर्शन-वन्दन करने का सौभाग्य प्रदान किया। तब सर्वजनानुप्रिय गुरु के सन् १९६७-६८ के कई रूपों के मानस दर्शन साक्षात् दर्शकों के द्वारा कराये जाने पर जिज्ञासाओं का ज्वारभाटा शान्त होने की अपेक्षा और बढ़ गया। तदपि ज्ञान के सागर, विद्या के सागर की निस्तब्ध गहराई में डूबा तो आनन्द की अनुभूति हुलसने लगी।

     

    सन् २०१५ भीलवाड़ा एवं २०१६ ब्यावर में विद्याधर के ज्येष्ठ भ्राता श्री महावीर जी अष्टगे का दुर्लभ संयोग बन पड़ा। सुसुप्त पडी जिज्ञासाएँ जागृत हो उठीं । तब उनके समाधान रूपी अमृत के प्याले पीता ही चला गया।

     

    इसके साथ ही विद्याधर जी की दो छोटी बहनों एवं मित्रों से भी कुछ स्मृतियाँ प्राप्त हुई एवं अजमेर जिले के प्रत्यक्षदर्शियों के धारणा ज्ञान का प्रकाश भी प्राप्त हुआ। सभी कुछ डायरी रूपी रयण मंजूषा में सुरक्षित करता रहा।

     

    मेरी अभिरुचि को देखकर जैन जगत् के भामाशाह दानवीर श्रीमान् अशोक जी पाटनी (आर, के. मार्बल) सपत्नीक ने मुझे प्रेरित किया कि सर्वोदयी महापुरुष गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी की विशेषताओं को दुनिया पहचाने; अतः आप यह संकलन प्रकाशित करने हेतु हमें उपलब्ध करावें।

     

    तब हमने मुनि श्री सुधासागर जी महाराज को जाकर इस बात से अवगत कराया। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए हर्षपूर्वक आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही मेरे अग्रज क्षुल्लक श्री गम्भीरसागर जी से भी सलाह ली, उन्होंने भी प्रोत्साहित किया।

     

    भीलवाडा में आचार्य श्री द्वारा प्रेषित शिष्य मुनि श्री महासागर जी एवं मुनि श्री निष्कम्पसागर जी संघ में सम्मलित हुए। उनको ब्यावर चातुर्मास में हस्तलिखित कृति दिखाई। तो वे बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने भी इस पावन कार्य को करने की ऊर्जा स्वरूप आशीर्वाद प्रदान किया ।

     

    जहाँ चाह वहाँ राह! निमित्त के बिना कार्य नहीं होता। प्रसंगवशात् गुरुवर आचार्य श्री जी के ५० वें दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य पर भारतवर्ष के श्रीमानों-धीमानों के द्वारा एक ‘संयम स्वर्ण महोत्सव समिति' बनाकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर महोत्सव मनाने की तैयारी की गई।

     

    ‘संयम स्वर्ण महोत्सव' के उपक्रम में प्रकाशित प्रस्तुति आपके हाथों में है। इस कृति को कम्प्युटराइज्ड रूप में तैयार करने वाले अभिषेक जैन शास्त्री'-सागर (म.प्र.) साधुवाद के पात्र हैं। साथ ही भीलवाड़ा (राजः) के शिक्षक भागचंद शाह, सुश्री मीनू जैन-कोटा (राजः), नरेन्द्र सावला-कोटा (राजः), ब्र. जिनेन्द्र कुमार जैन-शिवनगर जबलपुर (म.प्र.), अभिषेक जैन-महरौनी (म.प्र.), सुशील गंगवाल (गट्टू)- ब्यावर (राजः), प्रमोद जैन-ब्यावर (राजः), सुश्री चेतना जैन-ब्यावर (राजः), अभिषेक जैन-भगवाँ (म.प्र.),  दिनेश जैन-गोना ललितपुर (उ.प्र.) आदि ने हस्तलिपि के कार्य में सहयोग प्रदानकर गुरु महिमा को प्रकट  किया है, वे सब और जो मेरी विस्मृति के कारण छूट गए हों, उन सभी को धर्मवृद्धि रूप आशीर्वाद प्रदान  करता हूँ।

     

    इस खण्ड के प्रबंधन में कोटा के जयकुमार (बबलू), रजत सबदरा, भीलवाड़ा के प्रतीक गंगवाल ने महती भूमिका निभाई। उनकी श्रद्धा भक्ति समर्पण एक दिन रत्नत्रय में परिणत हो ऐसी शुभकामना है। इसके  साथ ही छायाचित्रों के संकलन में सहयोग प्रदान करने वाले अजमेर के सोनी प्रमोद कुमार जी, इन्दरचंद पाटनी, पद्म जी वकील साहब, पारस कासलीवाल, सुबोध जी पाटनी, संजय जैन (संजय स्टूडियो) पत्र लेखन की भूमिका बनाने में भाई विनय जी के सहयोगी भावों को साधुवाद देता हूँ। साथ ही ब्र. वीरेन्द्र शास्त्री ने अथक परिश्रम कर प्रकाशन सम्बन्धी जटिलतम कार्य को सहज सरल बनाया इसके लिये वे आशीर्वाद के अधिकारी हैं ।

     

    प्रस्तुत कृति प्रकाशन कर गुरु भक्तों/जिज्ञासुओं/शोधार्थियों तक पहुँचाने वाला विद्यापीठ परिवार एवं सौजन्यता प्रदानकर्ता श्रीमान् रतनलाल, कंवरलाल, अशोक कुमार, सुरेश कुमार, विमल कुमार पाटनी आर. के. मार्बल परिवार मदनगंज-किशनगढ़ (राजः) ने लोकोत्तर कार्य कर गुरुभक्ति की अनोखी प्रस्तुति दी है।

     

    सभी के सहयोगी भाव की पृष्ठभूमि में गुरु श्रद्धा भक्ति समर्पण की मजबूत बुनियाद हौसला आफजाई कर रही थी। गुरु आशीष उनके जीवन को उत्तरोत्तर विकास प्रदान करता रहे ऐसी मंगलभावना हैं।

    क्षुल्लक धैर्यसागर


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