Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ९२ - १. आचार्य श्री को श्रद्धांजलि, २. विहार व पुनः आगमन, ३. संघ आगमन, ४. मुनि दीक्षा लेने वाले ब्रह्मचारी की विराट शोभायात्रा, ५. २२ वर्षीय जैन ब्रह्मचारी द्वारा मुनि दीक्षा ग्रहण, ६. अजमेर में विद्याधर जी की दीक्षा का अभूतपूर्व आयोजन

       (0 reviews)

    ४-०४-२०१६

    बड़ोदिया (बाँसवाड़ा राजः)

     

    अध्यात्म जगत् के यशस्वी साधक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में नमोस्तु करता हूँ....

    हे गुरुवर आपकी साधना, ज्ञानाराधना, प्रवचनामृत, जिज्ञासा-समाधान एवं वृद्धावस्था में भी अद्वितीय-अनुपम कार्य करने के कारण समाजजन आपसे बेहद प्रभावित थे। इस कारण अखबारनवीस आपके अनोखे समाचार से पाठकों को आश्चर्यचकित करते रहते थे और अपने अखबार के पाठक बढ़ाते रहते थे। इस सम्बन्ध में मुझे इन्दरचंद जी पाटनी (महामंत्री दिगम्बर जैन महासंघ, अजमेर) ने कुछ अख़बारों की कटिंग दी, जो आपको दिखा रहा हूँ-

     

    १. आचार्य श्री को श्रद्धांजलि

    मदनगंज-किशनगढ़ में आचार्यश्री का समाधि दिवस। यहाँ पर ज्ञानमूर्ति वयोवृद्ध परम तपस्वी श्री १०८ श्री मुनि ज्ञानसागर जी महाराज का संघ सहित वर्षायोग हो रहा है। जिससे अपूर्व धर्म प्रभावना हो रही है। महाराजश्री के कुछ दिनों से नेत्रों में कष्ट हो जाने से स्थानीय दिगम्बर जैन समाज में अत्यन्त चिन्ता व्याप्त रही थी। अब पूर्व की अपेक्षा ठीक है। दिनाँक ०६-०६-१९६७ को जैन धर्म के वर्तमान काल के धर्म प्रवर्तक चारित्र चक्रवर्ति स्व. श्री १०८ आचार्य शान्तिसागर जी का समाधि दिवस भक्तिपूर्वक मनाया गया। जिसमें महाराजश्री ने आचार्यश्री को भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने संक्षेप भाषण में बताया कि आज जो जैन त्यागी मुनि नजर आ रहे हैं, वह आचार्य श्री की ही देन हैं। आचार्य श्री के जीवन पर संघस्थ त्यागियों के भाषण हुए। वैद्य पन्नालाल पाटनी (जैन गजट १४ सितम्बर १९६७)

     

    २. विहार व पुनः आगमन

    मदनगंज १५-०१-१९६८ को मध्याह्न में ३:३० बजे श्री १०८ ज्ञानमूर्ति ज्ञानसागर जी महाराज के संघ ने दादिया किशनगढ़ की ओर विहार कर दिया। विहार के समय महाराज श्री का सारगर्भित भाषण हुआ पश्चात् श्री विद्याकुमार जी सेठी अजमेर व श्री मूलचंदजी लुहाड़िया मदनगंज के भाषण के बाद संघ का विहार हो गया। रात को संघ किशनगढ़ शहर में ठहरा किशनगढ़ में समाज के अनेक प्रमुख व्यक्तियों ने महाराज श्री से विहार न करने के लिए निवेदन किया क्योंकि महाराज श्री के नेत्रों को क्षति पहुँचने का विशेष खतरा है। ध्यान रहे महाराज श्री के संघ का चातुर्मास मदनगंज में हुआ था। इस बीच महाराज श्री के नेत्रों में व्याधि हो गई थी। श्रीमान् धर्मवीर सर सेठ भागचंद जी साहब व श्री माणकचंद जी सोगाणी अजमेर ने भी श्री महाराजश्री से अभी यहीं रुकने के लिए प्रार्थना की, हर्ष है कि महाराजश्री पुनः मदनगंज पधारगए हैं।

    –वैद्य पन्नालाल पाटनी

    (जैन गजट १५ फरवरी १९६८)

     

    ३. संघ आगमन

    दादिया- श्री १०८ मुनि ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ मदनगंज-किशनगढ़ से रवाना होकर १२-०२-१९६८ को यहाँ पधारे हैं। दादिया आगमन पर समाज के सभी स्त्री-पुरुषों ने आपका स्वागत किया। सभी साधर्मी बन्धुओं से समाज का अनुरोध है कि यहाँ पधारकर महाराज श्री के प्रवचनों का लाभ उठायें। संघ में विद्वान श्री १०५ क्षुल्लक जी महाराज श्री सन्मतिसागर जी, सिद्ध सागर जी एवं शंभूसागर जी व त्यागीगण आदि हैं।

    गुमानमल झाँझरी

    (जैन गजट २२ फरवरी १९६८)

     

    ४. मुनि दीक्षा लेने वाले ब्रह्मचारी की विराट शोभायात्रा

    अजमेर के इतिहास में मुनिदीक्षा की अविस्मरणीय घटना

    (कार्यालय प्रतिनिधि द्वारा)

    अजमेर २१ जून। रविवार को स्थानीय जैन परिवार के जिस युवक ब्रह्मचारी श्री विद्याधर का ऐतिहासिक दीक्षा समारोह होने जा रहा है उसके सम्मान में आज हजारों जैन धर्मावलंबियों ने नगर में एक विराट शोभायात्रा निकाली। सम्भवतः अजमेर में यह प्रथम अवसर है जब जैन समाज के एक तरुण ब्रह्मचारी ने वैराग्य भावना में लीन होकर परम वीतरागी निर्ग्रन्थ दिगम्बरी मुनि दीक्षा लेनी चाही हो। रविवार को बड़ा धड़ा दिगम्बर जैन पंचायती नसियाँ में भव्य विराट आयोजन सम्पन्न होगा। जिसे देखने के लिए अजमेर से बाहर के जैन मतावलम्बी भी भारी संख्या में अजमेर आ रहे हैं। ब्रह्मचारी विद्याधर को मुनि दीक्षा जैन मुनि श्री ज्ञानसागर जी ग्रहण करायेंगे। इस विराट आयोजन की पूर्व संध्या स्थानीय कबाड़ी मोहल्ले से ब्रह्मचारी विद्याधर की एक विराट शोभायात्रा निकाली गई। जो शहर के विभिन्न मार्गों से होती हुई सोनी जी की नसियाँ में समाप्त हुई। ब्रह्मचारी श्री एक सुसज्जित हाथी पर अवस्थित थे और उनके आगे पीछे हजारों की संख्या में जैन समाज के नेता एवं श्रद्धालु स्त्री-पुरुष महावीर स्वामी का जय-जयकार करते हुए चल रहे थे।

    (दैनिक नवज्योति अजमेर (राजः) दिनाँक ३० जून १९६८, रविवार)

     

     

    ५. २२ वर्षीय जैन ब्रह्मचारी द्वारा मुनि दीक्षा ग्रहण

    २० हजार धर्मप्रेमियों की उपस्थिति में विशाल समारोह सम्पन्न

    (कार्यालय प्रतिनिधि द्वारा)

    अजमेर, ३० जून स्थानीय सुभाषबाग के पास स्थित बड़ा धड़ा नसियाँ में हजारों नर-नारियों एवं श्रद्धालु लोगों की अपार भीड़ के बीच आज बेलगाँव मैसूर के २२ वर्षीय ब्रह्मचारी श्री विद्याधर जैन मुनि की दीक्षा लेकर कठोर साधना एवं संयम व त्याग के अनुगामी हो गए। उल्लेखनीय है कि आज तक इतनी कम आयु का कोई भी ब्रह्मचारी मुनि दीक्षा जैसे कठिन मार्ग का अनुगामी इस शहर में नहीं बना। यही कारण था कि इस आत्म संयमी युवक ब्रह्मचारी के दीक्षा समारोह को देखने के लिए न केवल अजमेर से अपितु जयपुर, ब्यावर, नसीराबाद, केकड़ी, किशनगढ़ एवं अन्य अनेक दूरस्थ स्थानों तक के श्रद्धालु लोग उपस्थित हुए थे।

     

    ब्रह्मचारी विद्याधर समारोह सुविख्यात जैन मुनि आचार्य ज्ञानसागर जी के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। दीक्षा के सम्पन्न होने के साथ ही हजारों स्त्री-पुरुषों के हर्ष विह्वल जय जयकार के बीच नव दीक्षित मुनि को आचार्य विद्यासागर के नाम से अलंकृत कर दिगम्बर जैन मत के अनुसार उन्हें निरावरण कर दिया गया। यों तो समारोह स्थल पर आज प्रात: से ही दर्शनार्थी स्त्री पुरुषों का मेला लगना प्रारम्भ हो गया था किन्तु दीक्षा का कार्यक्रम दोपहर से पूर्व ही प्रारम्भ हो गया। इस विशाल समारोह का प्रारम्भ आज मध्याह्न १२:०५ बजे से नव दीक्षित बाल ब्रह्मचारी विद्याधर जी के कर कमलों से शान्ति विधान पूजा के साथ प्रारम्भ हुआ। तत्पश्चात् भजन एवं गायन के हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण के साथ २ बजे शुभ मुहूर्त पर दीक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।

     

    इस अवसर पर सेठ भागचन्द सोनी द्वारा प्रस्तावित तथा समाज द्वारा अनुमोदित प्रस्ताव के अनुसार जैन मुनि श्रीज्ञानसागर को चारित्र विभूषण की पदवी से विभूषित किया गया। इस समारोह के अन्तर्गत ५ दिन तक विराट शोभायात्रायें निकाली गई जिसमें लगभग ढाई हजार रुपया भेंट स्वरूप प्राप्त हुआ। एक प्रवक्ता के अनुसार इस धन राशि का उपयोग शास्त्रे प्रकाशन में किया जाएगा। दीक्षा समारोह के अवसर पर नव दीक्षित मुनि के धर्म के माता-पिता श्री हुकुमचंद लुहाड़िया और उनकी धर्मपल्लि ने आजन्म ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किया। कार्यक्रम के अन्त में जैन मुनि श्री ज्ञानसागर और नवदीक्षित मुनि विद्यासागर ने उपस्थित जन समुदाय को आशीर्वाद दिया।

     

    जीवन परिचय - नव दीक्षित मुनि की जैन समाज द्वारा प्रकाशित परिचय पुस्तिका के अनुसार आपका जन्म मैसूर प्रान्त के बेलगाँव जिला स्थित सदलगा ग्राम में हुआ था। उक्त मुनि वहाँ के एक कृषक परिवार से संबन्धित हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा कन्नड़ भाषा के माध्यम से प्रारम्भ हुई। आपका मन ९ वर्ष की आयु से ही वैराग्य की ओर अभिमुख हुआ। आपने कन्नड़ भाषी होते हुए भी संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया। आपने ब्रह्मचर्य अवस्था में ही आजन्म पद यात्रा का व्रत धारणकर रखा है।

    (दैनिक नवज्योति, अजमेर (राजः) दिनाँक १ जुलाई १९६८)

     

    ६. अजमेर में विद्याधर जी की दीक्षा का अभूतपूर्व आयोजन

    अजमेर ३० जून (नि.सं.) जितना हर्ष और उल्लास आज अजमेर में सम्पन्न परम कल्याणकारी मुनि दीक्षा समारोह के शुभ अवसर पर जैनाजैन सभी समाजों के आबालवृद्ध नर-नारी सभी में देखने को मिला वह अभूतपूर्व था। लोगों को सर्वत्र यह कहते सुना गया कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखकर कभी नेत्रों को कृतार्थ किया हो-ऐसा उनको स्मरण नहीं। श्रीमान् धर्मवीर सर सेठ साहब भागचंद सोनी जी के शब्दों में प्राकृतिक सुषमा से पूर्ण भारत के हृदय स्वरूप अजमेर नगर के महान् पुण्योदय से अजमेर के इतिहास में हुई यह प्रथम मुनि दीक्षा थी। इससे अजमेर धन्य हो गया।

     

    मैसूर राज्यान्तर्गत बेलगाँव जिला के सदलगा ग्राम निवासी स्वनामधन्य बाल ब्रह्मचारी २२ वर्षीय तरुण, पूज्य श्री विद्याधर जी ने ज्यों ही स्थानीय बाबाजी के नसियाँ के उद्यान में मध्याह्न २ बजे करीब ३० हजार जैनाजैन जनता के समक्ष एवं १०८ ज्ञानमूर्ति चारित्र विभूषण पूज्य मुनिराज श्री ज्ञानसागर जी महाराज के श्री चरणों में मुनिलिंग धारण करने की अपनी इच्छा प्रकट की तो श्री पं. विद्याकुमार जी का माइक पर इसे प्रकट करते ही गला भर आया और नेत्रों से मोती टपक पड़े। इन्द्रदेव भी भला पीछे कैसे रह सकते थे समस्त उपस्थित जन समुदाय के साथ ही वे भी हर्षाश्रु स्वरूप हल्की-हल्की बूंद बरसाने को मजबूर हो गए। यह कोई अनहोनी नहीं थी यह तो प्राकृतिक थी और प्रकृति भला अपने स्वभाव से इस परम आनन्द दायक कल्याणकारी अनुपम अवसर पर क्यों चूकती।

     

    दीक्षा समारोह का कार्यक्रम ठीक १२ बजे परमपूज्य मुनिराज श्री १०८ ज्ञानमूर्ति ज्ञानसागर जी महाराज के संसघ गाजे बाजे सहित पाण्डाल में पधारते ही जयकारों के गगनभेदी घोष के साथ प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम एक ५ वर्षीय नन्हें बालक ने अपनी तोतली वाणी में मंगलाचरण किया। पश्चात् कुछ गायन भाषणों के बाद दीक्षार्थी श्री विद्याधर जी ने परमपूज्य महाराज श्री के चरणों में दीक्षा हेतु अनुरोध के बाद। दीक्षा की आज्ञा मिलने पर उपस्थित प्राणी मात्र से क्षमा याचना की। समस्त उपस्थित जन समुदाय अपलक नेत्रों से उक्त क्रियाओं को देखकर आनन्द विभोर हो रहा था। इस अवसर पर मैसूर राज्य से दीक्षार्थी ब्रह्मचारी जी के अग्रज तथा भतीजे भी पधारे थे। उन्होंने दीक्षार्थी के वयोवृद्ध माता-पिता तथा अपना दीक्षा हेतु अनुमोदन किया। प्रभावना की अटूट धारा में जब दीक्षार्थी पूज्य ब्रह्मचारी जी ने अपने लम्बे घने काले बालों का निर्ममत्व भाव से केशलुंचन प्रारम्भ किया तब मोही प्राणी त्याग की इस पराकाष्ठा को देखकर गदगद हो आर्द्र हो गया।

     

    केशलोंच के मध्य में अनेक वैराग्यपूर्वक भाषण हुए जिनमें श्री पण्डित विद्याकुमार जी सेठी, श्री नाथूलाल जी वकील बँदी, श्री के.एल. गोधा, श्री पण्डित हेमचन्द्र जी शास्त्री के नाम उल्लेखनीय हैं। केशलोंच के अन्त में दीक्षार्थी ब्रह्मचारी विद्याधर जी ने समस्त परिग्रह का त्याग तृणवत् कर दिया। आकाश गगनभेदी जयनादों से गुंजायमान हुआ। इसी बीच समाज के शिरोमणि धर्मवीर दानवीर श्रीमान् रा.ब. सर सेठ भागचंद साहब सोनी का अत्यंत विद्वत्तापूर्ण ओजस्वी भाषण हुआ। भाषण के अंत में स्वागत समिति के माननीय अध्यक्ष के रूप में श्रीमान् माननीय सर सेठ साहब ने धन्यवादांजलि प्रस्तुत की। दीक्षा समापन के तुरंत बाद लगभग १० मिनट तक मूसलाधार जलवृष्टि हुई। उपस्थिति लगभग ४० हजार जन समूह धर्मप्रभावना देखकर भावविभोर हो गया। नवदीक्षित मुनिराज श्री का नाम श्री १०८ परमपूज्य मुनिराज विद्यासागर जी रखा गया। अंत में नवदीक्षित पूज्य मुनिराज तथा परमपूज्य श्री १०८ ज्ञानमूर्ति ज्ञानसागर जी महाराज के क्रमशः आशीर्वादात्मक संक्षिप्त प्रवचन हुए। आज के आयोजन में ही माननीय अध्यक्ष महोदय श्रीमान् धर्मवीर सर सेठ भागचंद जी साहब सोनी ने समस्त समाज की ओर से परमपूज्य मुनिराज ज्ञानमूर्ति श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज को ‘चारित्र विभूषण' की उपाधि से समलंकृत किया। अंत में कलशाभिषेक के बाद कार्यक्रम का जयघोष के साथ समापन हुआ।

     

    वस्तुत: अजमेर नगर निवासियों का महान् पुण्योदय ही है कि अभी गत माह हुई क्षुल्लक दीक्षा को १ माह ही हुआ था कि फिर उन्हें नेत्र सफल कर जीवन में कुछ करने की प्रेरणा प्राप्त करने का अवसर मिल गया। फिर भला उस अवसर से लाभ लेने में समाज पीछे क्यों रहता। समाज तन, मन और धन से इस अवसर को स्वर्णिम बनाने में जुट गया। दीक्षा के पूर्व लगातार ५ दिन तक दीक्षार्थी ब्रह्मचारी जी की शोभा यात्राएँ निकाली। बिन्दोरियाँ क्रमशः २५-०६-१९६८ को सेठ मिश्रीलाल जी, मीठालाल जी पाटनी, २६-०६१९६८ को सेठ राजमल जी मानकचंद जी चाँदीवाल, २७-०६-१९६८ को सेठ पूसालाल जी गदिया, २८०६-१९६८ को श्री सेठ मांगीलाल जी रिखबदास जी (फर्म सेठ नेमीचंद जी, शान्तिलाल जी बड़जात्या), २९-०६-१९६८ को श्री समस्त दिगम्बर जैन समाज जैसवाल पंचायत केसरगंज तथा ३०-०६-१९६८ को श्री सेठ हुकमचंद जी नेमीचंद जी दोषी की ओर से निकली। अंतिम बिन्दोरी प्रातः ७:३० बजे प्रारम्भ हुई।। इसके अतिरिक्त सभी बिन्दोरियाँ रात्रि को ७ बजे से निकली थी। अंतिम तीन बिन्दोरियों का आकर्षण अपूर्व था। दिनाँक २९ व ३० को बिन्दोरी हाथी पर निकली जिन्हें लगभग एक लाख व्यक्तियों ने देखा। दिनाँक २८-०६-१९६८ को श्री सेठ नेमीचंद जी शान्तिलाल जी की ओर से निकली बिन्दोरी का जुलूस का स्थानीय श्वेताम्बर बन्धुओं की ओर से भव्य स्वागत किया गया।

     

    दिनाँक २९-०६-१९६८ की शानदार बिन्दोरी में अजमेर की जनता ने दीक्षोन्मुख भव्यप्राणी को जब ट्यूबलाइटों से घिरे हुए हाथी पर अपनी सादा पोशाक, धोती और दुपट्टे में वीतराग मुद्रा में देखा तो वाह-वाह कर उठी। उल्लेखनीय है कि वयोवृद्ध साहित्य मनीषी ज्ञानमूर्ति श्री १०८ परमपूज्य ज्ञानसागर जी महाराज विहार करते हुए २०-०६-१९६८ को प्रातः काल ससंघ यहाँ पधारे थे। आपका स्वागत जुलूस के सरगंज पुलिस थाने से प्रारम्भ होकर नगर के प्रमुख बाजारों में घूमता हुआ श्री धर्मवीर सर सेठ भागचंद जी साहब सोनी की नसियाँ जी में पहुँचा। आपके स्वागत सम्मान में अनेकों विद्वानों के भाषण हुए। श्री सर सेठ साहब ने महाराज श्री से ससंघ यहीं चातुर्मास करने की प्रार्थना की। पश्चात् महाराज श्री का अन्त:स्पर्शी सारगर्भित प्रवचन हुआ। मौन सम्मति के साथ ही साथ तभी यह भी शुभ संकेत प्राप्त हुआ था कि इसी आषाढ़ शुक्ला ५ रविवार ३० जून को संघस्थ ब्रह्मचारी श्री विद्याधर जी मुनि दीक्षा ग्रहण करेंगे। जिसका सौभाग्य आज अजमेर के ही नहीं अपितु बाहर के हजारों धर्म श्रद्धालु महानुभावों ने प्राप्त किया।

     

    श्री परमपूज्य १०८ ज्ञानमूर्ति चारित्र विभूषण ज्ञानसागर जी महाराज के यहाँ पदार्पण के समय से ही महती धर्म प्रभावना हो रही है दिनाँक २२ जून से २४ जून तक बाल आश्रम दिल्ली के कलाकारों का कार्यक्रम हुआ। ऋषभदेव उदयपुर से वापिस पधारते हुए श्रीमान् सेठ सुनहरीलाल जी आगरा के साथ श्री पण्डित बाबूलालजी जमादार भी पधारे। आपके यहाँ अत्यंत ओजस्वी सारपूर्ण दो भाषण हुए। उक्त सभी कार्यक्रमों को स्थानीय समस्त समाज का पूर्ण सहयोग प्राप्त रहा। स्वागत कमेटी के माननीय अध्यक्ष श्रीमान् धर्मवीर रा.ब.सर सेठ भागचंद जी सोनी का पूर्ण वरदहस्त आयोजन के लिए प्राप्त रहा। सर सेठ साहब की अटूट गुरु भक्ति का ही प्रतिफल है कि आयोजन के प्रत्येक कार्य में समाज ने उन्हें कर्मठ पाया। सर सेठ साहब के अतिरिक्त सर्व श्री छगनलाल जी पाटनी, स्वरूपचंद जी कासलीवाल, शान्तिलाल जी बड़जात्या, पदमकुमार जी फोटोग्राफर, पदमकुमार जी वकील, किशनलाल जी जैन, मिलाप चंद जी पाटनी, स्थानीय संगीत मण्डल, जैन वीर दल, जैसवाल जैन स्वयं सेवकदल, पुलिस विभाग, नगर पालिका तथा पत्रकारों आदि का कार्यक्रम को पूर्ण सफल बनाने में सक्रिय सहयोग अविस्मरणीय रहा। दिनाँक ३० जून को सायंकाल बाहर से आगत समस्त साधर्मी बंधुओं की भोजन व्यवस्था निसंदेह उत्तम रही।

    (जैन गजट ४ जुलाई १९६८)

     

    ७. पर्वराज सम्पन्न

    अजमेर-यहाँ परमपूज्य ज्ञानमूर्ति श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के विराजने से महती धर्म प्रभावना हो रही है। पर्वराज पर्युषण मुनिराज श्री के सान्निध्य में यहाँ महती प्रभावना के साथ सम्पन्न हुए। पर्व में ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन ब्यावर के व्यवस्थापक श्री पण्डित हीरालाल जी सिद्धान्त शास्त्री के पधारने से तत्त्वचर्चा व धर्म-श्रवण का काफी आनन्द रहा। श्री सर सेठ भागचन्द जी साहब सोनी के सरावगी मोहल्ला स्थित मन्दिर जी में पण्डित जी का नित्य प्रति मध्याह्न व रात्रि में तत्त्वार्थसूत्र व दशधर्म पर ओजस्वी प्रवचन होता था। पूजनोपरान्त लगभग साढ़े दस बजे मंदिर जी में ही षोडशकारण भावना व दशधर्म पर स्वयं श्रीमान् धर्मवीर सर सेठ भागचन्द जी साहब सोनी अत्यन्त हृदयग्राही प्रवचन करते थे। प्रात: व मध्याह्न में ३ बजे से नसियाँ जी में परमपूज्य मुनिराज ज्ञानसागर जी महाराज व पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मार्मिक गम्भीर प्रवचन होता था।

     

    अनन्त चतुर्दशी व प्रतिपदा को नसियाँ जी तथा शहर के मन्दिरों में कलशाभिषेक हुए। भाद्रपद शुक्ला २ को परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती श्री १०८ आचार्यवर्य स्वः शान्तिसागर जी महाराज का स्वार्गारोहरण दिवस धूमधाम से मनाया गया। इसी प्रकार गत वर्ष सल्लेखनापूर्वक दिवंगत मुनिराज श्री १०८ सुपाश्वसागर जी महाराज की पुण्यतिथि भी मनाई गयी।

    (जैन गजट, सितम्बर १९६८)

     

    ८. केशलोंच

    अजमेर-यहाँ चातुर्मास काल में श्री १०८ परमपूज्य ज्ञानमूर्ति ज्ञानसागर जी महाराज के ससंघ विराजने से अपूर्व धर्म प्रभावना हुई। दिनाँक ०३-११-१९६८ को परमपूज्य मुनिराज श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का केशलोंच अत्यन्त प्रभावना पूर्वक सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर सर्वश्री पण्डित विद्याकुमार जी सेठी, पण्डित चंपालाल जी, बा. निहालचंद जी के अतिरिक्त श्रीमान् सर सेठ भागचंद जी साहब सोनी का ओजस्वी सामयिक भाषण हुआ। श्रीमान सर सेठ साहब द्वारा नवीन पिच्छिका समर्पित करने के बाद परमपूज्य मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज व परमपूज्य ज्ञानमूर्ति १०८ ज्ञानसागर जी महाराज का सारगर्भित ओजस्वी उपदेश हुआ। अन्त में चातुर्मासिक प्रतिक्रमण हुआ।

    (जैन गजट, गुरुवार ७ नवम्बर १९६८, मगसिर कृष्ण ३ वी.नि.सं. २४९५)

     

    ९. प्रवचन

    अजमेर जाटियावास में ज्ञान-ध्यान-तपोरक्त तपस्वी मुनिराज श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज व मुनि श्री विद्यासागर जी के प्रवचन के लिए वहाँ के प्रमुख व्यक्तियों ने आयोजन किया। इस स्थान पर पहले आचार्य देशभूषण महाराज का भी प्रभावशाली प्रवचन हो चुका है। पाण्डाल की सुन्दर व्यवस्था थी। जैनों के अतिरिक्त अजैन बन्धु भी हजारों की संख्या में उपस्थित थे। पूज्य मुनि ज्ञानसागर जी महाराज ने 'मानव चरित्र की विशेषता को बतलाते हुए संग्रहवृत्ति की भावना को बुरा बताया विज्ञान ने मानव के लिए सुख-सुविधा के साधन अवश्य जुटाए हैं, लेकिन इससे असंतोष एवं अधैर्य को मानव जीवन में प्रोत्साहन अवश्य मिल रहा है। पूज्य मुनि विद्यासागर जी महाराज ने 'त्याग के महत्व को बतलाते हुए जीवन को त्यागमय बनाने पर जोर दिया। पं. विद्याकुमार जी सेठी शास्त्री, पं. हेमचंद शास्त्री, ब्र. हीरालाल जी, श्री माणकचंद जी सोगानी व श्री निहालचंद जी जैन ने भी सामयिक विचार प्रकट किए। श्री प्रभुदयाल जी जैन ने भी स्वरचित कविता पढ़ी। यह कार्यक्रम दिन के २ बजे से ४ बजे तक सम्पन्न हुआ।

    (जैन गजट १४ नवम्बर १९६८)

     

    १०. संघ विहार

    अजमेर-चातुर्मास काल में यहाँ विराजमान परमपूज्य वयोवृद्ध ज्ञानमूर्ति चारित्र विभूषण श्री १०८ मुनिराज ज्ञानसागर जी महाराज तथा परमपूज्य श्री १०८ मुनिराज विद्यासागर जी महाराज का दिनाँक ०१-१२-१९६८ को केशरगंज के लिए ससंघ विहार हो गया। विहार बेला पर आयोजित सभा में अनेक वक्ताओं ने अपने मार्मिक विचार प्रकट किए। प्राय: सभी वक्ताओं ने पूज्य मुनिराज संघ से अभी यहीं विराजमान रहने का विनम्र अनुरोध करते हुए कहा कि परमपूज्य मुनिराज ज्ञानसागर जी महाराज की वृद्धावस्था तथा समयसार प्रकाशन के महत्त्वपूर्ण कार्य की यथाशीघ्र संपूर्ति के लिए मुनिसंघ का यहाँ विराजना अत्यंत आवश्यक तथा समाज हित में हैं। आशा है, परमपूज्य मुनिराज समाज के अनुरोध को अवश्य स्वीकार करेंगे। वक्ताओं के अंत में मुनिराजद्वय का प्रभावशाली उपदेश हुआ।

    (जैन गजट, ५ दिसम्बर १९६८)


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...