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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - ८८ विशेषता में विशेषता

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    ३१-०३–२०१६

    वीरोदय (बाँसवाड़ा-राजः)

    कल्पद्रुम महामण्डल विधान

     

    ऊर्ध्व से ऊर्ध्वतर ज्ञान चैतन्य क्रियाशक्ति को प्रकाशित करने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को अनन्त नमन करता हूँ...

    हे गुरुवर! आपके अनोखे शिष्य की हर क्रिया पर भक्तों की पैनी दृष्टि लगी हुई रहती थी। भक्तों की दृष्टि से मुनि विद्यासागर जी की साधना के शिखरों की चमकती धवलता छिप न सकी। इस सम्बन्ध में पदमचंद जी सेठी जयपुर ने एक संस्मरण लिख दिया, वह आपको बता रहा हूँ।

     

    विशेषता में विशेषता

    "सन् १९६८ में दीक्षा से पहले और दीक्षा के बाद हमने कई बार विद्यासागर मुनिराज को रातरातभर एक टाँग पर खड़े देखा है। आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के कहने पर मुनि विद्यासागर जी को स्वास्थ्य की दृष्टि से नीम की पत्तियों का एक लोटा रस पीना पड़ता था। तो भी वो इतने कड़वे रस को पीते हुए नाक-मुँह नहीं सिकोड़ते थे, हँसते-हँसते पी लेते थे और भोजन में स्वादिष्ट रस नमक और मीठा ब्रह्मचारी अवस्था से ही छोड़ दिया था। उनका यह रसना इन्द्रिय विजय के पुरुषार्थ की दृढ़ता इतनी अधिक थी कि कोई भी धोके से भी किसी चीज में मिलाकर नमक-मीठा नहीं दे सकता था।

     

    एक बार विद्यासागर जी के हाथ में एक जहरीला कीड़ा ने काट दिया। हाथ में सूजन आ गई किन्तु अपनी वेदना किसी को नहीं बताई। विद्यासागर जी में गुरु के प्रति श्रद्धा-भक्ति-समर्पण इतना था कि वो उनकी पर्याय बन गए थे, कभी भी उनसे दूर नहीं बैठते थे और उनकी नजरों से ओझल नहीं होते थे। मैं कभी-कभार कोई धर्म की बात मुनि विद्यासागर जी से करता था और उस समय ज्यों ही ज्ञानसागर जी महाराज का इशारा होता या कोई हलचल होती तो तत्काल वो वहाँ पहुँच जाते थे। गुरुजी की सेवा में ऐसे तल्लीन रहते थे जैसे-श्रवणकुमार माता-पिता की सेवा में रहते थे।

     

    उस समय मुनि विद्यासागर जी को हिन्दी भाषा अच्छे से नहीं आती थी, तो भी गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज इनका हिन्दी का अभ्यास बढ़ाने के लिए प्रवचन करवाया करते थे, मुझे याद है, विद्यासागर जी का पहला प्रवचन सरावगी मोहल्ला अजमेर में हुआ था और वह प्रवचन "Honesty Is The Best Policy" विषय पर हुआ था। वह प्रवचन ऐसा धाराप्रवाह हिन्दी, अंग्रेजी में हुआ था कि सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। इतने अल्प समय में कन्नड़भाषी होने के बावजूद भी हिन्दी, अंग्रेजी भाषा पर दक्षता हासिल कर ली थी। उस प्रवचन के बाद अजमेर में जगह-जगह प्रवचन हुए, जिसको सुनने के लिए लोग दौड़े-दौड़े आते थे।"  इस तरह मुनि विद्यासागर जी के प्रवचन से प्रभावित होकर अजमेर में कई स्थानों पर आपके एवं मुनि विद्यासागर जी के प्रवचनों का आयोजन किया जाता था। मुनि विद्यासागर जी महाराज ज्ञानानुभूति को निरंतर आपकी कसौटी पर कसते चले जा रहे थे। ऐसे सम्यक् पुरुषार्थी को नमन करता हुआ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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