२८-०३-२०१६
वीरोदय (बाँसवाड़ा राजः)
कल्पद्रुम महामण्डल विधान
सर्वकाल ब्रह्म में ही चर्या करने वाले परिपूर्ण सम्वेदनशील ब्रह्मज्ञानी गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ब्रह्मत्व को प्रणाम करता हूँ...
हे गुरुवर! आप जब अपनी अस्वस्थता के कारण मुनि विद्यासागर जी को १९६८ चातुर्मास में अधिक समय नहीं दे पा रहे थे, तब आपने समाज वालों से कहा था कि विद्याधर जी को संस्कृत ज्ञान के लिए किसी संस्कृत अध्यापक को बुला लो। तब का एक संस्मरण आपके अनन्य भक्त छगनलाल जी पाटनी अजमेर ने १९९४ में मुझे लिखकर दिया। वह आपको बता रहा हूँ। इससे आपको आपके शिष्य की प्रतिभा पर गौरव का अनुभव होगा
प्रोफेसर साहब पढाने आए पढ़ने बैठ गए
"भाई कैलाशचंद जी पाटनी ने मेयो कॉलेज अजमेर से प्रोफेसर साहब को आमन्त्रित किया और वो आ गए। उनको बता दिया गया कि इन मुनि महाराज को संस्कृत पढ़ाना है। जैसे ही पढ़ाना शुरु हुआ, थोड़ी देर बाद ही प्रोफेसर साहब बोले-इनको तो मेरे से ज्यादा अच्छी संस्कृत आती है। इनको संस्कृत पढ़ाने वाले गुरु कौन हैं ? हम उनके दर्शन करना चाहते हैं जिन्होंने इन्हें इतनी ऊँची संस्कृत पढ़ाई है। मुझको आज ३० वर्ष हो गए कॉलेज में पढ़ाते हुए, लेकिन हम इतनी अच्छी संस्कृत में प्रवेश नहीं कर सके। धन्य हैं ऐसे गुरु जिनको ऐसा शिष्य मिला और धन्य हैं ऐसे शिष्य जिनको ऐसे गुरु मिले। मैं इनको नहीं पढ़ा सकता। यदि ये मुझे समय दे दें, तो मैं इनसे पढ़ना चाहता हूँ।" इस तरह प्रतिभा सम्पन्न मुनि विद्यासागर जी की क्षयोपशम शक्ति इतनी अगाध थी कि एक बार जो पढ़ते वो कण्ठस्थ करके ही छोड़ते थे। दिन प्रतिदिन उनकी मेधाशक्ति उज्ज्वल होती जा रही थी। ऐसी मेधा को प्रणाम करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य