१७-0२-२०१६
धरियावाद (प्रतापगढ राजः)
परमशान्त तपोनिधि गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज आपके पावन पूत चरणों में नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु...।
हे गुरुवर! आज मैं आपको ब्रह्मचारी विद्याधर जी की ऐसी सहजासहज प्रवृत्ति बता रहा हूँ, जिसको पढ़कर आप मुक्त हँसी से अपने आप को रोक नहीं पायेंगे। यह घटना आपके शिष्य मेरे गुरुवर आचार्य श्री जी ने सन् २०१२ डोंगरगढ़ चातुर्मास में दोपहर की कक्षा में खिलखिलाते हुए प्रसंगवश सुनाई, जिसको सुनकर सभी भक्तजन तालियों की गड़गड़ाहट के साथ मुक्तकण्ठ से हँस पड़े। इस वार्ता के साक्षी बने श्रीमान् दीपचन्द छाबड़ा (नांदसी वाले) जयपुर ने मुझे यह संस्मरण सुनाया। वह मैं आपको लिख रहा हूँ-
भोला ब्रह्मचारी विद्याधर
"आचार्यश्री बोले ब्रह्मचारी विद्याधर १९६७ में जब उत्तरभारत आ रहा था, तब रेलयात्रा सम्बन्धी उसे ज्यादा कोई जानकारी नहीं थी। स्तवनिधि से कोल्हापुर गया, वहाँ से बॉम्बे गया, स्टेशन पर टिकिट ली तब तक गाड़ी चल पड़ी, तो वह दौड़कर आगे पहुँचा और इंजन में बैठे ड्रायवर को जोर-जोर से हाथों का इशारा करते हुए मुख से बोला-रोको! रोको!! रोको!!! चालक ने देखा और ट्रेन रोक दी और विद्याधर डिब्बे में चढ़ गया। ऐसा था विद्याधर। इस तरह उत्साही भोला ब्रह्मचारी यह भूल गया कि दौड़कर डिब्बे पर भी चढ़ा जा सकता है। दुनियादारी के छलछन्दों से दूर आत्मज्ञान की प्राप्ति के पुरुषार्थ में लीन विद्याधर जी पहुँच गए आपके पास। पुरुषार्थी गुरुओं के चरणों में नमस्कार करता हुआ....
आपका
शिष्यानुशिष्य