पत्र क्रमांक-४१
०६-०२-२०१६
चित्तौड़ (राजः)
आत्मभू, सर्वगुण सम्पन्न गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को अन्तरंग विशुद्धि के साथ नमोस्तुनमोस्तु-नमोस्तु... ।
हे बुधेश गुरुवर! आपको यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता की अनुभूति होगी कि आपका सर्वप्रिय शिष्य विद्याधर घर पर स्वाध्याय सुनकर और शास्त्र पढ़कर कर्म सिद्धान्त का जानकार हो गया था। इस सम्बन्ध में विद्याधर के बड़े भाई ने बताया
कर्म सिद्धान्त को जीवन में उतारा
"एक बार विद्याधर मित्र मारुति के साथ खेत पर गया था। बाजू वाले खेत में ट्रेक्टर चल रहा था। तो उस खेत की मिट्टी का बड़ा डिगला हमारे खेत में आ गया यह विद्याधर ने देख लिया तो उसने जाकर उस डिगले को वापस बाजूवाले खेत में डाल दिया। उसी वक्त मैं पहुँच गया तब मारुति विद्याधर से पूछ रहा था तुमने ऐसा क्यों किया? विद्याधर बोला-‘बाद में उसको मिट्टी लेने के बदले अगले जन्म में जमीन देना पड़ेगी। जैसे-टेनेन्ट कानून के अन्दर कई लोगों की जिन्दगी निकल गई। ये सब कर्म का खेल है। 'तब मारुति बोला-ये तो मिट्टी है इससे क्या होने वाला है और फिर तुमने तो ली नहीं, वह स्वयं आई है, तो विद्याधर बोला-‘वस्तु की कीमत की बात नहीं हैं, उस वस्तु के ममत्व भाव से पाप होता है। वह मिट्टी तो हमने देख ली है ना... अपनी नहीं है फिर भी लेना तो पाप ही हुआ ना....'' इस प्रकार विद्याधर किसी की कोई कीमती वस्तु तो छोड़ो मिट्टी भी नहीं लेता था। ऐसे पवित्र भावों के प्रति किसका मस्तक नत न होगा...ऐसे गुरु को पाकर हृदय प्रफुल्लित है, नमन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य