१2-११-२0१५
भीलवाड़ा (राजः)
साहित्य अध्यात्म दर्शन की त्रिवेणी गुरुवर श्री १०८ श्री आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल त्रियोग त्रिभक्ति पूर्वक नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु....
हे ज्ञानमणि दीप गुरुवर! आज आपको आपके शिष्य, मेरे गुरुवर के जीवन की घटनाओं और उनके बारे में विस्तृत जानकारी देने के क्रम में चतुर्थ पत्र लिख रहा हूँ। आज भी कुछ लोगों को गुरुवर श्री विद्यासागर जी के जन्म समय को लेकर भ्रम बना हुआ है इसके समाधान की प्रामाणिक जानकारी के लिए विद्याधर के बड़े भाई श्री महावीर जी अष्टगे ने जो बताया, वह मैं आपको बता रहा हूँ-
शरद पूर्णिमा के दिन जन्मा धरती का चाँद
‘‘मेरी माँ की बुआ (अक्काताई) ने बताया कि विद्याधर के जन्म के समय पर मैं उपस्थित थी।सदलगा की दरगाह में चार बजे नगाड़ा बजा था उससे कुछ समय पूर्व विद्याधर का जन्म हुआ था। तब श्रीमन्ती (मेरी माँ) का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया, तो चिक्कौड़ी समाचार किया गया, वहाँ से कार आई उसमें श्रीमन्ती एवं बच्चे को ले गये और अस्पताल में भर्ती कराया था। उस दिन शरद पूर्णिमा की तिथि शुरु हो गई थी जो दिन में २:११ बजे दोपहर तक थी। इसलिए शरद पूर्णिमा के दिन जन्म हुआ माना गया। इसी तरह माँ ने भी बताया था कि मुझे इतना याद था कि शरद पूर्णिमा को खेत के कार्यक्रम में जाना है। अत: विद्याधर का जन्म रात्रि के तीसरे प्रहर में हुआ यह सही है।"
इस प्रकार विद्याधर का जन्म १०-१०-१९४६ शरद पूर्णिमा के दिन मनोहर प्रहर में हुआ। पूर्ण चन्द्र प्रकाश में अज्ञान अन्धकार दूर हुआ भ्रम का निवारण हो गया। मेरा अज्ञान अन्धकार दूर हो इस मंगल भावना के साथ नमोस्तु गुरुवर....
आपका जिज्ञासु
शिष्यानुशिष्य