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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - २२ बचपन में पचपन-सा व्यवहार

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    २८-११-२०१५

    भीलवाड़ा (राजः)

     

    दार्शनिक विचारक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की वन्दना करता हूँ…  

    हे गुरुवर! जब कोई बालक बड़ों के समान व्यवहार करे तो उसे हर कोई सयाना बालक कहते हैं। आपका शिष्य विद्याधर बचपन में बड़ों के मुख से एक आदर्श बालक के रूप में स्थापित किया जाने लगा था। हर कोई अपने बच्चों को विद्याधर जैसा बनने की सलाह/समझाइस देने लगे थे, इसका कारण आज मैं आपको लिख रहा हूँ, जो मुझे विद्याधर के ज्येष्ठ भ्राता जी ने बताया-

     

    बचपन में पचपन-सा व्यवहार

    “१२-१३ वर्ष के बाद से विद्याधर को कभी भी हँसी-मजाक करते नहीं देखा। न ही कभी किसी मित्र के गले में हाथ डाले हुए देखा और न ही उसके गले में किसी मित्र का हाथ डला देखा। एक बार जो कपड़े पहन लेता था। तो दो दिन तक उसकी प्रेस नहीं बिगड़ती थी। उसकी कभी कोई भी शिकायत अड़ोस-पड़ोस से या विद्यालय से घर पर नहीं आई।" इस प्रकार विद्याधर महापुरुषों के चरित्रों को सुनकर गंभीर होता चला गया और बन गया था सभी का प्रिय। मुझसे किसी को कोई शिकायत न रहे, ऐसी समझ मुझमें भी प्रगट हो इस भावना के साथ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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