२४-११-२0१५
भीलवाड़ा (राजः)
सज्जनों के उपकारक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में प्रणाम निवेदित करता हूँ...
हे दिव्य विचारक गुरुवर! आज आपको आपके शिष्य ब्रह्मचारी विद्याधर के कलाकार हृदय का भी परिचय देना चाहता हूँ। जिससे आप अन्दाज लगा सकते हैं कि विद्याधर के मन में क्या था? कहावत तो यहीं कहती है कि हृदय की बात बाहर आती ही है, जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। इस सम्बन्ध में विद्याधर के बड़े भाई ने बताया-
चरित्र का चित्रकार
"विद्याधर ११-१२ वर्ष की उम्र से ही महापुरुषों के रेखाचित्र बनाने लगा था। उसे महापुरुष और देश की सेवा करने वाले पुरुषों के चरित्र में विशेष अनुराग होता था। धीरे-धीरे बहुत सारे चित्र बना लिए थे, जिनमें भगवान् महावीर स्वामी, भगवान् बाहुबली, सरस्वती देवी, लक्ष्मी देवी, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, झाँसी की रानी, हिरण्य कश्यप, महाराज शिवाजी, सिपाही, पशु-पक्षियों के आदि।
विद्याधर के चित्रों को देखकर अड़ोस-पड़ोस के लोग सभी खुश होते थे और मित्र लोग उसके चित्रों की नकल करते थे। चित्रों को बनाने के बाद उन्हें बड़े संभालकर रखता था। आज वो चित्र धरोहर स्वरूप रखे हुए हैं।" इस तरह जिसका जैसा भाव होता है, वह उसी में रुचि लेता है। विद्याधर को महापुरुषों का चरित्र सुनना बहुत अच्छा लगता था। बड़ी एकाग्रता से सुनता था और उन्हीं के चित्रों को अपने मानसपटल पर बनाकर कलम से कागज पर उकेरता था। अपने चरित्र का चित्रकार मैं भी बनूँ इस भावना से चरित्र के चित्रकार-गुरुद्वय को नमस्कार...
आपका
शिष्यानुशिष्य