२३-११-२०१५
भीलवाड़ा (राजः)
आत्मानुशासक-अनुशासनप्रिय गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के श्रीचरणों में नमोस्तु नमोस्त नमोस्तु...
हे आचार्यप्रवर! आपके द्वारा घड़े गये महापुरुष के बचपन की छोटी-सी छोटी बात अनुकरणीय एवं शिक्षाप्रद है। वे बचपन से ही अनुशासनप्रिय रहे इस सम्बन्ध में श्रीमती कनक जी (दिल्ली) अजमेर ने बताया-
आज्ञा पालक और एकाग्रता
"दिल्ली में हम लोग प्रतिदिन, चातुर्मास कर रहे पूज्य मुनि श्री मल्लिसागर जी महाराज के पास जाते थे और विद्याधर के संस्मरण सुना करते थे। एक दिन उन्होंने बताया- ‘विद्याधर बाल्यकाल से ही आज्ञा का पालन करते थे और कोई भी कार्य बड़ी लगन एवं चतुराई से करते थे। एक बार सभी बच्चों को कहा पढ़ाई करोगे और कोई उठकर नहीं जायेगा। तब बाहर सड़क पर कोई बैंडबाजा निकल रहा था तो सभी उठकर चले गए, लेकिन विद्याधर बड़ी एकाग्रता से पढ़ता रहा, बाहर उठकर नहीं गया।' इस तरह विद्याधर को बाहर का कोई विशेष आकर्षण नहीं था। आकर्षण था तो केवल गुणों का, वही आज हम उनमें देखते हैं। इसी प्रकार बड़े भाई महावीर जी ने भी स्वानुशासन की बात बताई-
स्वानुशासन
‘‘घर का कोई भी बड़ा व्यक्ति विद्याधर को जो भी काम बताते वो काम प्रतिदिन समय पर कर देता था। अनुशासन का पक्का था वह। विद्याधर ने कभी भी स्कूल से छुट्टी नहीं की और सुबह प्रतिदिन समय पर तैयार हो जाता था। जब कभी स्कूल जल्दी जाना पड़ता था या माँ दूध दुहती रहती थी तो विद्याधर बिना गर्म हुआ ताजा दूध पीकर चला जाता था। उस समय तो चाय-कॉफी का चलन ज्यादा नहीं था इसलिए हम लोगों ने कभी नहीं पी।" इस तरह बचपन से ही स्वयं अनुशासित रहते और दूसरों से भी अनुशासन का पालन कराते थे। इस सम्बन्ध में बड़े भाई महावीर जी ने एक बात और बताई-
बचपन के अनुशासक
"विद्याधर को विद्यालय की कक्षा में प्रथम नम्बर मिलने पर कक्षा का कप्तान बना दिया गया था तब लीडरशिप करते थे। शिक्षक के अभाव में विद्यार्थियों की हाजरी लगाना, कक्षा की सफाई की बारी जिस टोली की होती उनसे सफाई करवाना, कक्षा में गोबर लिपवाना, कक्षा में अनुशासन बनाए रखना। इसी तरह घर पर भी छोटे भाई-बहिन को अनुशासित रखते थे। विद्याधर ने कहीं भी कोई भी ऐसी शरारत नहीं की, जिससे कोई शिकायत घर पर आयी हो। उसके मुख से कभी गाली या गन्दे शब्द नहीं सुने। विद्याधर ने किसी भी गंदे बच्चों से दोस्ती नहीं की क्योंकि उसे अनुशासन प्रिय था।” इस तरह उन्हें बचपन से ही मिलिट्री के अनुशासन के समान अनुशासन प्रिय था। इसी तरह मुनिश्री योगसागर जी महाराज ने एक स्मृति बताई-
समय के पाबंद
‘‘मैं जब छोटा था तब मित्रों के साथ पतंग उड़ाने चला जाता था। समय का पता ही नहीं चलता और शाम हो जाती, तब बड़े भैया विद्याधर जी लेने आते और बोलते-तुमको समय का ध्यान नहीं है। रात हो जाने पर माँ भोजन नहीं देगी। शीघ्र चलो ..." इस तरह बचपन से ही विद्याधर समय के पाबंद थे और अपने छोटे भाई-बहिनों को समय पर कार्य करने का पाठ पढ़ाते थे। आत्मानुशासन की प्राप्ति के लिए महान् अनुशासक के चरणों में नमन करता हुआ....
आपका
शिष्यानुशिष्य