२२-११-२0१५
भीलवाड़ा (राजः)
ज्ञानरश्मि प्रसारक ज्ञानसूर्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ज्ञानाचरण की त्रिकाल वंदना करता हूँ…
हे ज्ञानभानु! आज मैं विद्याधर में जिनवाणी सुनने, पढ़ने, चिंतन-मनन करने का संस्कार बचपन से कैसे आया? इस रहस्य का उद्घाटन कर रहा हूँ। इस बारे में आपसे ज्ञान की शिक्षा पाने वाली श्रीमती कनक जी जैन (दिल्ली) हॉल निवासी ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र, अजमेर ने मुझे बताया-
माँ के संस्कारों ने बनाया सरस्वती पुत्र
‘‘एक बार मैं परिवार सहित दिल्ली में विराजमान मुनि मल्लिसागर जी महाराज के दर्शन करने गई थी। तब उन्होंने संस्मरण सुनाते हुए कहा- 'विद्याधर जब श्रीमन्ती जी के गर्भ में आया तब से ही श्रीमन्ती प्रतिदिन घर में विराजमान जिनवाणी के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करती थी और स्वाध्याय किया करती थी और जब मैं स्वाध्याय का वाचन करता था तब वह भी नित्यप्रति स्वाध्याय सुना करती थी। इस कारण विद्याधर में बचपन से ही जिनवाणी सुनने, पढ़ने और सुनाने की रुचि जागृत हो गई थी। इस तरह मल्लिसागर जी के पास जब भी जाते, तो वो संस्मरण सुनाते। उससे हमारे जीवन में बहुत परिवर्तन आया।”
इस प्रकार माँ श्रीमन्ती के द्वारा गर्भ में दिए गए संस्कारों ने ऐसे सरस्वती पुत्र को जन्म दिया जो आपसे सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर, सारे जग के अज्ञान अन्धकार को मिटाने में कारण बन रहा है। सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हेतु गुरुद्वय के चरणों को नमोस्तु करता हुआ....
आपका
शिष्यानुशिष्य