पत्र क्रमांक-९६
०४-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
निर्विकारता के परिचायक निस्पृही संत गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में कोटिशः द्रव्य एवं भाव से नमस्कार करता हूँ... हे गुरुवर! आपने १९६८ अजमेर चातुर्मास कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को ससंघ उपवास रखकर समाप्त किया और उसी दिन पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम हुआ जिसके सम्बन्ध में अजमेर के इन्दरचंद जी पाटनी ने हमको बताया-
प्रथम पिच्छिका परिवर्तन
“०३-११-१९६८ को परमपूज्य मुनिराज श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ का पिच्छिका परिवर्तन अजमेर में हुआ। तब पण्डित विद्याकुमार जी सेठी अजमेर, पण्डित चंपालाल जी-अध्यापक बाहुबली दिगम्बर जैन पाठशाला नसीराबाद, प्रा. निहालचंद जी एवं सर सेठ भागचंद जी सोनी साहब के ओजस्वी सामयिक भाषण हुए। तत्पश्चात् श्रीमान् सर सेठ साहब द्वारा ज्ञानसागर जी महाराज को नवीन पिच्छिकाएँ भेट की गयीं और संघस्थ मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज ने खड़े होकर गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को नमोऽस्तु करके उनके हाथों से नवीन पिच्छिका ग्रहण की और पुरानी पिच्छिका उन्हें दे दी। इसी प्रकार सभी क्षुल्लक महाराजों ने भी पिच्छिका ग्रहण की। विद्यासागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका कजौड़ीमल जी अजमेरा को गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने प्रदान की और अन्य पिच्छियाँ भी भक्तों को प्रदान की थीं।”
इस तरह मेरे गुरु आज तक पिच्छी परिवर्तन की परिपाटी का इसी प्रकार से प्रवर्तन करते आ रहे हैं। ऐसे गुरु चरणों में नमोऽस्तु करते हुए...
आपका शिष्यानुशिष्य