पत्र क्रमांक-९४
०२-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
सत्यान्वेषी भेदविज्ञानी शुद्धशोधार्थी दादागुरु परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों की वंदना करता हूँ...
ब्र. विद्याधर को गुरु से मिलाने वाले कौन ?
हे गुरुवर! ब्र. विद्याधर जी आपके पास कब, किस दिन, कहाँ पर, कैसे पहुँचे इस सम्बन्ध में देश-विदेश के गुरुभक्तों, शोधार्थियों, पाठकों को जिज्ञासा बनी हुई है। यद्यपि हमने जो कुछ खोजा वह आपको ‘अन्तर्यात्री महापुरुष' नामक पत्रसंग्रह ग्रन्थ के माध्यम से प्रेषित किया था। उसको पढ़कर गुरुभक्तों की जिज्ञासा और बढ़ गई। ऐसी महती जिज्ञासा के समाधान की आवश्यकता को देखते हुए जब श्रीमान् अशोक जी पाटनी (आर. के. मार्बल) आचार्यश्री के दर्शनार्थ जा रहे थे तो हमने गुरु के पास पाटनी जी के हाथ से जिज्ञासा भेजी। तब गुरुदेव डिण्डोरी की ओर विहार कर रहे थे। ०९-०३-२०१८ को सुबह करंजिया ग्राम चेक पोस्ट पहुँचे। वहाँ पर अशोक जी पाटनी ने आचार्य श्री के समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत की ‘जैन गजट'-०५-०६-१९६७ के अखबार में लिखा है कि २९-०५-१९६७ को मुनि श्री ज्ञानसागर जी अजमेर पधारे और जैन गजट'-२६-०६-१९६७ में लिखा है २५-०६-१९६७ को मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज के केशलोंच अजमेर में हुए, फिर ‘जैन गजट'-३१-०७-१९६७ में लिखा है कि २०-०७१९६७ को किशनगढ़ में मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चातुर्मास की स्थापना हुई इस समाचार के अन्दर संघपरिचय में ब्रह्मचारी विद्याधर जी का भी नाम है। तो आप पहुँचे कहाँ थे और कौन लेकर गया था? तब आचार्य श्री बोले-‘मैं जब अजमेर आया तो सीधे ब्र. विद्याकुमार जी सेठी के यहाँ गया था और वे ही मुझे दूसरे दिन गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पास किशनगढ़ लेकर गए थे, फिर गुरु जी के साथ अजमेर आये थे। वहाँ पर २५-२७ दिन बाद गुरु जी के केशलोंच करने का सौभाग्य मिला था। फिर वहाँ से वापिस किशनगढ़ गए थे और वहाँ जाकर चातुर्मास हुआ था।
उपरोक्त जिज्ञासा-समाधान से बात स्पष्ट हो जाती है कि ब्र. विद्याधर जी २५-२६ मई को गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पास किशनगढ़ पहुँचे थे। इस तरह ५० वर्षीय रहस्य के ऊपर पड़ा पर्दा अब उठ गया। हे गुरुवर ! २१वीं सदी के कलिकाल सर्वज्ञ मेरे गुरु के स्वर्णिम इतिहास को सुरक्षित करने में आपका आशीर्वाद इसी प्रकार बना रहे। आपश्री के चरणों में नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु...