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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 164 मंगल विहार- मुनि विद्यासागर बने श्रवण कुमार

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१६४

    २५-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    अस्वस्थ किन्तु स्व में स्थित गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकाल वंदन करते हुए... हे गुरुवर! १९७१ चातुर्मास समापन होने के बाद आपके देह का स्वास्थ्य नित्य-प्रति बिगड़ता जा रहा था। कमजोरी बढ़ती जा रही थी। तब समाज के निवेदन पर आपने शीतकाल प्रवास भी मदनगंजकिशनगढ़ में ही किया था। समाज ने अपना अहोभाग्य समझा जो उन्हें आषाढ़ की आष्टाह्निका से लेकर फाल्गुन की आष्टाह्निका तक आपकी सेवा करने का उन्हें अवसर मिला और द्वितीय आष्टाह्निका पूर्ण होने पर चातुर्मासिक प्रतिक्रमण कर आपने ११ मार्च को विहार कर दिया। उस विहार में श्री रमेशचंद जी गंगवाल मदनगंज-किशनगढ़ भी साथ चल रहे थे। रास्ते में चलते-चलते भी आपके लाड़ले शिष्य विनोदी अन्दाज में ज्ञान बाँट दिया करते थे किन्तु तब, जब उन्हें विश्वास हो जाया करता कि किसी का भला हो सकता है, अन्यथा वो मौन रहते। इस सम्बन्ध में रमेश जी ने बताया-

     

    गुरुदक्षिणा में चाय छोड़ी

    ‘‘किशनगढ़ से विहार हुआ तो मैं भी साथ में गया था। तब रास्ते में मुनि श्री विद्यासागर जी बोले-‘चातुर्मास आदि में तुमने बहुत लम्बा साधु समागम किया, क्या सीखा?' तब मैंने कहा-गुरुदेव मैं अभी १८ वर्ष का ही हूँ ज्यादा तो कुछ नहीं सीखा किन्तु मैंने आपको अपना गुरु मान लिया है। तब महाराज हँसते हुए बोले-‘गुरु दक्षिणा दिए बिना शिष्य नहीं बनते हैं। मैंने कहा-आप बताइए दक्षिणा में क्या चाहिए? तो महाराज बोले-‘गुरु इच्छा तुम पूरी नहीं कर पाओगे। तुम ही कोई नियम ले लो। वही गुरु दक्षिणा है। तो मैंने कहा- मैं आज से चाय नहीं पियूँगा। उन्होंने झट आशीर्वाद दे दिया और भी लोगों ने बात करना चाही तो वो हूँ-हूँ ही बोलते रहे लेकिन बात नहीं की।''

     

    इस तरह किशनगढ़ से आप अजमेर पहुँचे, भव्य आगवानी हुई और अजमेर में प्रभावना की ज्ञानगंगा बहने लगी। इस सम्बन्ध में ४ मई १९७२ के जैन गजट' में स्वरूपचंद कासलीवाल ने इस प्रकार समाचार प्रकाशित कराया-

     

    अभूतपूर्व प्रभावना

    “अजमेर में शुभमिति चैत्र कृष्णा १३ (१३ मार्च १९७२) को परमपूज्य चारित्र विभूषण ज्ञानमूर्ति १०८ आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का संघ सहित पदार्पण हुआ। तीन वर्ष पूर्व अजमेर में ही दीक्षित युवा मुनिराज बाल ब्रह्मचारी परमपूज्य १०८ श्री विद्यासागर जी का हृदयग्राही सामयिक प्रवचन प्रातः ८९ बजे तक सर सेठ भागचंद जी सा. सोनी की नसियाँ जी में नित्य-प्रति होता है। लगभग एक हजार श्रोता प्रतिदिन लाभान्वित हैं अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हो रही है।"

     

    इस तरह अजमेर में धर्म प्रभावना का एक और महामहोत्सव महत् प्रभावना के साथ सम्पन्न हुआ। त्रिदिवसीय महावीर जयंती का समारोह आयोजित किया गया। इस सम्बन्ध में ‘जैन गजट' ३० मार्च १९७२ को समाचार प्रकाशित हुए। जिसका संक्षेप समाचार आपको बता रहा हूँ-

     

    श्री महावीर जयन्ती समारोह सानंद सम्पन्न

    अजमेर-स्थानीय श्री महावीर जयंती समारोह समिति के तत्वाधान में श्री महावीर जयंती का त्रिदिवसीय कार्यक्रम अपूर्व उत्साह एवं उल्लासपूर्ण वातावरण में सुसम्पन्न हुआ। दिनांक २५-०३-७२ को स्थानीय रेल्वे बिसिट इंस्टीट्यूट में सायं सवा पाँच बजे से एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। सभा में विभिन्न धर्मावलम्बी प्रतिनिधियों ने भगवान महावीर स्वामी के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित की। दिनांक २६-०३-७२ को प्रातः ८ बजे से श्री सन्मति परिषद के तत्वाधान में बाल खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। २७-०३-७२ को प्रातःकाल से ही उल्लासपूर्ण प्रभातफेरियों एवं ध्वजवंदन आदि के कार्यक्रम हुए। लगभग ८ बजे से श्री १००८ पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन जैसवाल मन्दिर जी केसरगंज से विशाल रथयात्रा जुलूस निकला, जो लगभग डेढ़ बजे वापिस केसरगंज पहुँचा। मध्याह्न में ढाई बजे सरावगी मोहल्ले में परमपूज्य युवा मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में कलशाभिषेक हुए। इस अवसर पर परमपूज्य मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का मार्मिक प्रेरणास्पद उपदेश हुआ। सायं काल ८ बजे स्थानीय नया बाजार मैग्जीन के विशाल प्रांगण में श्री सेठ सर भागचंद जी सा. सोनी की अध्यक्षता में विशाल सभा का आयोजन किया गया। श्री दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने और भी बतलाया-

     

    ‘‘मई माह में मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज ने केशलोंच किया यह उनका दीक्षोपरान्त पन्द्रहवाँ केशलोंच था और चौदहवाँ केशलोंच मदनगंज-किशनगढ़ में फरवरी माह में किया था। ८ मई को प्रातः अजमेर से विहार कर दिया। विहार से पूर्व सर सेठ भागचंद जी सोनी जी ने एवं छगनलाल जी पाटनी, कजोड़ीमल जी अजमेरा आदि आचार्य गुरुदेव के अनन्य भक्तों ने स्वास्थ्य को देखते हुए निवेदन किया, अनुनय विनय की, कि आपका स्वास्थ्य विहार के लिए उपयुक्त नहीं है अत: आप यहीं पर ग्रीष्मकाल और चातुर्मास की प्रार्थना स्वीकार करें। तब गुरुदेव मंद-मंद मुस्कुराते हुए विहार कर गए।

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    इस सम्बन्ध में मुझे अतिशय तीर्थक्षेत्र श्री महावीर जी के पुस्तकालय से ‘जैन गजट' अखबार की ११ मई १९७२ गुरुवार अजमेर की कटिंग प्राप्त हुई जिसमें समाचार प्रकाशित हुआ|

     

    मंगल विहार

    “अजमेर-श्री परमपूज्य १०८ आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का ८ मई १९७२ को प्रातः ससंघ नसीराबाद के लिए मंगल विहार हुआ। ऊषा काल में सैकड़ों धर्म श्रद्धालु नर-नारी आचार्य व युवा मुनिराज पूज्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के दर्शनार्थ उपस्थित थे। श्री धर्मवीर सेठ सर भागचंद जी सा. सोनी के नेतृत्व में अजमेर समाज ने आचार्य श्री से अजमेर में ही चातुर्मास करने की विनम्र प्रार्थना की। आचार्य श्री का चातुर्मास अजमेर में ही होने की सम्भावना है। उल्लेखनीय है कि संघस्थ पूज्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के धर्मोपदेश से यहाँ हजारों नर-नारियों ने अभूतपूर्व धर्मलाभ लिया।"

     

    इस प्रकार दीपचंद जी के अनुसार माखुपुरा में पाटनियों के चैत्यालय में रुके और पाटनी परिवार ने आहारचर्या करवाई। फिर दूसरे दिन ९ मई को प्रातः माखुपुरा से बीर चौराहा पहुँचे वहाँ पर बीर ग्राम के और नसीराबाद के लोगों ने आहारचर्या करवाई। फिर १० मई को प्रातः बीर चौराहा से नसीराबाद इस सम्बन्ध में और भी जानकारी नसीराबाद के आपके अनन्य भक्त इंजीनियर भागचंद जी बिलाला ने बतलायी-

     

    मुनि विद्यासागर बने श्रवण कुमार

    “मई १९७२ की बात है परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपने प्रिय शिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज एवं ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी, क्षुल्लक विनयसागर जी, क्षुल्लक आदिसागर जी तथा त्यागीगण के संघ सहित भयंकर गर्मी में अजमेर से विहार किया। उस समय गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को तेज बुखार था। वे चल नहीं पा रहे थे तब नसीराबाद के हम श्रावकों ने निवेदन किया कि हम लोग डोली बनाकर ले चलते हैं। तो आचार्यश्री बोले- 'नहीं, क्या कोई जिन्दा में कंधे पर चलता है?' तब तत्काल मुनि श्री विद्यासागर जी बोले- 'मैं कब आपकी वैयावृत्य करूंगा। मैं आपको अपनी पीठ पर लेकर चलूंगा' और जब शहर से ढेड़-दो किलोमीटर बाहर आ गए तब मुनि श्री विद्यासागर जी ने बच्चों की तरह उन्हें अपनी पीठ पर उठा लिया और धीरे-धीरे चलते हुए माखुपुरा तक लेकर आए। लगभग ६ किमी. अपनी पीठ पर अपने गुरु को लेकर चले। तब हम सब लोग यह ही कह रहे थे- मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज श्रवणकुमार बन गए। दूसरे दिन प्रात:काल वहाँ से विहार हुआ तो मुनि श्री विद्यासागर जी ने गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को जैसे ही अपनी पीठ पर उठाया तो ज्ञानसागर जी बोले- 'नहीं, नहीं, तुम्हारा शरीर तो तप रहा है। तुम्हें तेज बुखार है, मैं पैदल ही चलूंगा।' तब मुनि विद्यासागर जी बोले- ‘मुझे कोई तकलीफ नहीं है, मैं ले चलूंगा।' तब गुरुदेव ने मना कर दिया। दोनों ही पैदल चलते रहे । ६ किमी. चलके बीर चौराहा पहुँचे वहाँ पर एक अन्य धर्म की धर्मशाला में रोका गया । बीर ग्राम के लोग आ गए श्री छीतरमल जी बाकलीवाल, श्री शान्तिलाल जी गदिया ने बीर ग्राम चलने का निवेदन किया। तब मुनि श्री विद्यासागर जी बोले- ‘गुरु जी में इतनी शक्ति नहीं है कि वे ७-८ किमी. और चल सकें।' तब नसीराबाद और बीर ग्राम के लोगों ने वहीं पर चौका लगाकर आहार दान दिया। फिर दूसरे दिन १० मई को प्रातः ५:३० बजे विहार कर ९ कि.मी. चलकर नसीराबाद पहुँचे। नसीराबाद में भव्य स्वागत हुआ। नसीराबाद के युवाओं में बहुत उत्साह था क्योंकि उनके प्रिय मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज आ रहे थे।"

     

    इस प्रकार आपके लाड़ले शिष्य ने एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया जो ज्ञात इतिहास में अद्वितीय है। बीर चौराहे से जब विहार हुआ उस समय का एक संस्मरण नसीराबाद के शान्तिलाल जी पाटनी ने सुनाया-

     

    बाहर से ही नहीं अन्दर से भी सुन्दर

    १९७२ में अजमेर से माखुपुरा, बीर चौराहा होते हुए नसीराबाद की ओर विहार कर रहे थे तब बहुत जोरों से आंधी चल रही थी। उस समय विद्यासागर जी महाराज बड़े हैण्डसम लग रहे थे। मैंने ज्ञानसागर जी महाराज को कहा कि विद्यासागर जी बहुत अच्छे-सुन्दर लग रहे हैं। तो गुरु ज्ञानसागर जी महाराज बोले- ‘वे बाहर से ही नहीं अन्दर से भी सुन्दर हैं। आगे ज्ञायक बनकर मोक्षमार्ग प्रकाशित करने वाले होंगे।' मैं गुरु महाराज के अभिप्राय को नहीं समझ पाया। तो मैंने कहा- आपने मोक्षमार्ग प्रकाशक तो पढ़ने दिया नहीं, फिर कैसे मोक्षमार्ग प्रकाशक बनेंगे? तो ज्ञानसागर जी महाराज मेरे को पिच्छी लगाकर बोले- विद्यासागर जी को क्रियाकाण्ड पसंद नहीं हैं। वे अपने अन्दर सावधान रहकर चारित्र पालन करेंगे तो अपने आप मोक्षमार्ग के प्रकाशक हो जायेंगे।'' 

     

    इस तरह हे गुरुवर! आप एक सच्चे जौहरी हैं जो आपने सच्चे हीरे को पहचाना और तराशा है। जो आज आपकी कसौटी पर खरा उतरा है। जैसा आपने कहा था आज हम वैसा ही पा रहे हैं। ऐसे गुरुशिष्य के पावन चरणों में प्रणाम करता हुआ...

    आपका शिष्यानुशिष्य

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