पत्र क्रमांक-११२
२१-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
द्रव्य-गुण-पर्याय के भेदाभेदात्मक स्वरूप के ज्ञाता तद्रूप परिणमन करने वाले दादा गुरुवर परमपूज्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ज्ञानाचरण को त्रिकाल वन्दन करता हूँ... हे गुरुवर! आप गुरु-शिष्य की साधना को संघ में रहकर जैसा देखा वैसा ही दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया वह अपनी प्रेरणा स्वरूप लिख रहा हूँ...
वर्ष १९६९ ने देखी चातुर्मास की दिनचर्या
‘‘प्रातः ३ बजे के आस-पास आचार्य श्री एवं मुनि श्री विद्यासागर जी उठकर रात्रि प्रतिक्रमण, सामायिक, २४ तीर्थंकरों की स्तुति, आम्नाय पाठ आदि करके शौच क्रिया के लिए जाते थे। वहाँ से आकर देववंदना करते, फिर स्वाध्याय करते। तत्पश्चात् ८ से ९ बजे तक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज प्रवचन करते थे। केसरगंज में लगभग २५० दिगम्बर जैन घर थे एवं सभी धर्मात्मा मुनि भक्त थे। प्रवचन सुनने के लिए सभी आते थे मन्दिर का हॉल पूरा भर जाता था। तत्पश्चात् ९:३० बजे संघ आहारचर्या के लिए उठता था। आहार करके सभी शिष्यगण आते और गुरु के पास जाकर समाचार देते। यदि कोई व्यवधान या परेशानी होती तो गुरुदेव उनका अच्छे से समाधान बताते । आचार्य महाराज सतत भिक्षा शुद्धि की ओर सावधान करते थे। दोपहर में १२ बजे से सामायिक आदि करते। २ बजे से आचार्य महाराज स्वाध्याय कराते और दोपहर में ३ बजे से मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य महाराज समाज के लिए प्रवचन करते थे। तत्पश्चात् संघ सामूहिक मुनि प्रतिक्रमण करता, जिसमें क्षुल्लक, ऐलक, ब्रह्मचारी सभी बैठते थे और उसके बाद देव-दर्शन करके गुरु महाराज की वैयावृत्य करते । अँधेरा होने से पहले सामायिक में लीन हो जाते सामायिक के पश्चात् श्रावकगण आ जाते और गुरुमहाराज की वैयावृत्य करते। मुनि श्री विद्यासागर जी चिन्तन मनन में लीन रहते, वे श्रावकों से वैयावृत्य नहीं कराते थे। मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज नित्यप्रति गुरु महाराज की वैयावृत्य करते । ९:३०-१0:00 बजे के बीच गुरु महाराज विश्राम में चले जाते। मुनि श्री विद्यासागर जी का पता नहीं चलता था कि वे कब विश्राम करते किन्तु वे गुरु महाराज के चरणों के पास ही शयन करते थे। उन्हें कभी हमने अन्यत्र शयन करते नहीं देखा।"
इस प्रकार हे दादागुरु! आपकी दिनचर्या में एक भी क्षण प्रमाद के लिए नहीं था। समय बचता तो व चर्चा करते, नहीं तो अपनी साधना एवं संघ के लिए समय देते। इसी तरह मुनि श्री विद्यासागर जी - महाराज, आपकी ही तरह उनके कोष में भी पर के लिए एवं संसार के लिए समय नहीं था। सच्चे गुरु से सच्चा संस्कार पाया और आज वे संस्कार महागुरुकुल बनकर अनेकों को आगम के सद् संस्कारों से कारित कर यह युक्ति चरितार्थ कर रहा है| जैसा गुरु-वैसा चेला। गुरु कीजे जान-जान, पानी पीजे छान-छान। | इसी प्रकार केसरगंज के युवा लोग मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के साथ प्रातः शौचक्रिया के लिए जाते थे। इस सम्बन्ध में कन्हैयालाल जी जैन केसरगंज अजमेर ने १३-११-२०१५ को भीलवाड़ा में बताया-
युवाओं को मिली सीख : स्वस्थ रहने का नुस्खा
कुछ युवा लोग जिनमें रिखबचंद जी पुनविया, कैलाशचंद जी बरेठा, खुट्टीमल जी, किशनचंद जी कोठारी आदि रोज प्रात:काल मुनि श्री विद्यासागर जी के साथ शौच क्रिया के लिए १-१.५ ३.मी. दूर जंगल में जाया करते थे। मैं भी कभी-कभी जाया करता था। रास्ते में हम लोग उनसे कई जिज्ञासाएँ पूछा करते। तो वे बहुत अच्छे तरीके से हँसते हुए हम लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान कर देते थे। जब वहाँ से लौटकर आते तो वे सीधे छत पर जाते थे। वहाँ पर तरह-तरह के योगासन करते थे। लगभग एक घण्टा तक शीर्षासन लगाते थे। वे हम लोगों से कहा करते थे- दवाईयाँ खाने की अपेक्षा रोज आसन लगाना चाहिए या एक्सरसाईज करना चाहिए। शरीर स्वस्थ रहेगा तो धर्माराधना अच्छे से हो सकेगी।''
एक अच्छी परम्परा
दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी वालों ने बताया ‘‘मुकुट सप्तमी का दिन था सम्पूर्ण संघ मंच पर विराजमान था और अजमेर की सम्पूर्ण समाज महिला-पुरुष सभी लोग अपने-अपने घर से शुद्ध लाडू बनाकर लाए थे। भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की पूजा हुई और अन्त में निर्वाणकाण्ड भक्तिभाव से पढ़ा गया और सभी ने एक साथ लाडू चढ़ाकर भगवान पार्श्वनाथ की जय बोली- “निरंजन, निराकार, ज्योति स्वरूप, श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ, दाता-विधाता के हुकम से जैनधर्म बढ़े चलो-बोलो पार्श्वनाथ भगवान की... जय।' तत्पश्चात् गुरु महाराज का प्रवचन हुआ।'' इस तरह सामाजिक कार्यक्रमों में आप सान्निध्य प्रदानकर गृहस्थधर्म रूप उपासकों का उत्साहवर्द्धन करते। ऐसे निश्चय-व्यवहार धर्मज्ञ गुरु-शिष्य के पावन चरणों में त्रिकाल नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु....
आपका शिष्यानुशिष्य