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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 111 प्रभावना के साथ महती प्रभावना

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१११

    २०-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    नियति के इशारों के जानकार अनुभवी भविष्यद्रष्टा दादागुरु के परिपक्व ज्ञानाचरण को नमन करता हूँ.. हे गुरुवर ! सन् १९६९ के वर्षायोग के बारे में अजमेर जिले की समाजें टकटकी नजरों से देख रही थीं कि किसके भाग्य में ज्ञानगंगा का अमृतपान लिखा है। इस पत्र में वह रहस्य उजागर कर रहा हूँ और चातुर्मास की दैनन्दिनी लिख रहा हूँ यदि कोई भूल चूक हो तो क्षमा करना क्योंकि मैं अपने मन से कुछ नहीं लिख रहा हूँ-

     

    समय ने पुनः लौटाया अजमेर

     

    दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने भीलवाड़ा २०१५ में बताया-

    ‘‘गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज का स्वभाव बहुत ही सरल और सहज था, जब मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज नसीराबाद की ओर चले गए तो गुरु महाराज पुनः अजमेर की ओर लौट आए। समाज में खुशी की लहर दौड़ गई। सोनी नसियाँ में दूसरे दिन केसरगंज समाज के गणमान्य श्रीमान् श्रीपति जी, मांगीलाल जी, कुट्टीमल जी, राजेन्द्र कुमार जी आदि महानुभावों ने आचार्य महाराज के प्रवचनोपरान्त श्रीफल अर्पितकर केसरगंज मन्दिर में चातुर्मास हेतु निवेदन किया।''

     

    हे दादागुरु ! आपके स्वास्थ्य में तबदीली के चलते समय ने पुनः आपके पगों को रोका और आप न चाहते हुए भी नियति के इशारों पर परिणमित हुए आपके मुँख से निकला-‘अजमेर में तो चातुर्मास हो ही गए हैं अब देखो ‘काललब्धि बलतें दयाल' समय पर जो हो जावे सो ठीक है।'' साधक पुरुषों के मुख से जो निकल जाता है वह सिद्धवाक् चरितार्थ होकर ही रहता है।

    इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने २०१५ भीलवाड़ा में बताया-

     

    चातुर्मास की स्थापना

     

    ‘‘द्वितीय आषाढ़ में अष्टाह्निका पर्व के प्रथम दिवस २२ जुलाई मंगलवार को गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने सोनी नसियाँ से विहार कर दिया केसरगंज पहुँचने से पहले ही समाचार पहुँच गया। दिगम्बर जैन जैसवाल समाज केसरगंज में खुशी की लहर दौड़ गई और आकाश गुंजित जयकारों के मध्य संघ का प्रवेश कराया। २३ जुलाई को प्रात:काल प्रवचन के बाद केसरगंज समाज के अध्यक्ष श्रीमान् श्रीपति जी जैन, श्री रामस्वरूप जी, श्री दीनानाथ जी ने श्रीफल चढ़ाकर निवेदन किया कि हम लोग अपनी ओर से सिद्धचक्र मण्डल विधान कराना चाहते हैं आपका आशीर्वाद चाहिए। तब गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज जी ने आशीर्वाद रूप वचन कहे-‘खूब अच्छे से करावो आशीर्वाद है' और २४ जुलाई आषाढ़ शुक्ला १० से तीनों महानुभावों ने अपनी ओर से पण्डित हेमचंद जी शास्त्री एम.ए. के निर्देशन में महामण्डल विधान प्रारम्भ किया। आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी २८ जुलाई सोमवार को केसरगंज मन्दिर में आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने और संघस्थ मुनि श्री विद्यासागर जी, ऐलक श्री सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक श्री सुखसागर जी, क्षुल्लक श्री सम्भवसागर जी, ब्र. मांगीलाल जी, ब्र. बनवारीलाल जी, ब्र. जमनालाल जी, ब्र. दीपचंद जी छाबड़ा आदि सभी ने उपवास रखा और सकल दिगम्बर जैन समाज अजमेर की उपस्थिति में भक्तिपाठ आदि करके चातुर्मास का संकल्प किया। ३१ जुलाई को सिद्धचक्र महामण्डल विधान पूर्ण हुआ। हवन के पश्चात् शान्ति विसर्जन हुआ तत्पश्चात् श्रीजी की शोभायात्रा निकाली गई जिसमें आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज सम्मिलित हुए फिर कलशाभिषेक हुआ।

     

    प्रभावना के साथ महती प्रभावना

     

    ३१ जुलाई को विधान के समापन पर जुलूस से प्रभावना हुई तथा भयंकर गर्मी के बावजूद भी मुनि श्री विद्यासागर जी जुलूस में चले और फिर दोपहर में दीक्षोपरान्त चौथा केशलोंच किया। जिसमें अपार जनसमूह देखने के लिए उपस्थित हुआ। कारण कि २ दिन पहले राख मंगवाई तब समाज के लोगों को पता चल गया था। केशलोंच के दौरान स्थानीय भजन मण्डली द्वारा भजन हुए एवं विद्वानों के भाषण हुए। मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज केशलोंच के बाद नीचे सिर करके बैठे रहे क्योंकि उनको दो दिन पहले आई फ्लू रोग हो गया था और दोनों आँखें लाल थीं किन्तु मुनि श्री विद्यासागर जी अपने नियम में बने रहे अपने समय पर ही केशलोंच किया, समय को नहीं टाला कर्मों को ही टलना पड़ा। बाद में र्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज एवं मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का प्रवचन हुआ। इस तरह ३१ जुलाई को महाप्रभावना हुई। जिसमें मुख्य आकर्षण मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का था। कारण कि मुनि उपवास के दिन सुबह जुलूस में चले, केशलोंच किया और फिर मार्मिक प्रवचन भी दिया। इस शक्तिमय साधना को देख सकल समाज बहुत अधिक प्रभावित हुई। इस सम्बन्ध में श्रीपति जी जैन ने जैन मित्र' सूरत अखबार में समाचार भेजा जो १४-०८-१९६९ को प्रकाशित  हुआ।

     

    इस प्रकार अजमेर में मनोज्ञ मुनिराज श्री विद्यासागर जी की साधना एवं ज्ञान का परिपाक देखकर अज्ञानी शंकालू साम्प्रदायिक मिथ्यादृष्टियों की बोलती बंद हो गई। ऐसे गुरु-शिष्य के पावन चरणों में नतसिर  प्रणाम करता हुआ...

    आपका शिष्यानुशिष्य

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