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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 109 भावों की अनुभूति जंगल में एवं प्रतिदिन परीक्षा

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१०९

    १७-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    समयसारमय ज्ञानयज्ञ के आहुति दाता आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की पावन पद वंदना करता हूँ... हे गुरुवर! आप जब आगम शास्त्रों का अध्ययन कराते तब आत्मानुभूति में ऐसे खो जाते कि उसकी आनंदानुभूति मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को होती और वे इस आनंदानुभूतिरूप आत्मसंवेदन ऊरने के लिए आपकी आज्ञा लेकर जब कभी आंतेड़ की छतरियों के एकान्त में विलय को प्राप्त हो जाते। ऐसे ही प्रथम मुनि दीक्षा दिवस से पूर्व दीक्षा के समय की आत्मानुभूति करने के लिए आप से अनुमति लेकर निकल पड़े अन्तर्यात्रा पर। इस सम्बन्ध में कन्हैयालाल जी जैन (केसरगंज) ने १३-११-२०१५ को भीलवाड़ा में संस्मरण सुनाया जो मैं आपको लिख रहा हूँ-

     

    दीक्षा के समय के भावों की अनुभूति जंगल में

     

    ‘‘१९ जून को हम लोगों ने भजन गायककार प्रभुदयाल जी के साथ मीटिंग की और रात्रि में मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज की सन्निधि में उनको अच्छे-अच्छे भजन सुनाकर भक्ति करने का भाव बनाया और ८ बजे शाम को जैसे ही वहाँ पहुँचे, तो वहाँ पर मुनि श्री विद्यासागर जी नहीं मिले । ब्रह्मचारी श्री दीपचंद जी छाबड़ा से पूछा महाराज कहाँ हैं तो उन्होंने कहा हमें भी नहीं पता गुरु जी से पूछो तब हम लोग सामायिक के पश्चात् आचार्य महाराज ज्ञानसागर जी के पास गए, उनसे पूछा महाराज! विद्यासागर जी महाराज नहीं दिख रहे हैं? तब ज्ञानसागर जी महाराज ने इशारा करके बताया कि वे छतरियों में ध्यान करने गए हैं। तब हम लोग छतरियों में नहीं जा सके कारण कि छतरियाँ नसियाँ से ३ कि.मी. दूर जंगल में हैं। उस समय वहाँ तक जंगल था और जंगली जानवर आते रहते थे। सुबह हम लोग नसियाँ जी गए तब मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज वहाँ से वापिस आ गए थे। प्रभुदयाल जी ने कहा महाराज हम लोग रात में आपको भजन सुनाने आए थे, आप नहीं मिले। तब महाराज बोले-“हम आत्मभजन सुन रहे थे। तो हम लोगों ने पूछा रात कैसी निकली? बोले-पता ही नहीं चला सुबह कब हो गई।''

     

    हे गुरुवर! इस तरह आपके द्वारा दिया ज्ञान विद्या को विद्यासागर जी समय-समय पर अनुभूत करते रहते थे और आप दृढ़ विश्वास से भर गए होंगे कि यह लाड़ला शिष्य आत्मा की गहराईयों में डूबडूबकर आत्मरस का रसास्वादन करेगा और कुन्दकुन्दाचार्य की एक-एक गाथाओं को चरितार्थ करेगा।

     

    दोपहर में मुनि दीक्षा दिवस समारोह का भव्य आयोजन हुआ। जिसके सम्बन्ध में इन्दरचंद जी पाटनी ने बताया कि ‘‘मध्याह्न की सामायिक के पश्चात् मुनिसंघ मंच पर विराजमान हुआ तब गीतकार गायक प्रभुदयाल जी ने स्वरचित मुनि श्री विद्यासागर जी की पूजन रचाई। तत्पश्चात् विनयांजली सभा आयोजित हुई और अंत में ब्यावर समाज, नसीराबाद समाज, किशनगढ़ समाज और केसरगंज समाज के प्रतिनिधियों ने एवं अजमेर की ओर से सर सेठ भागचन्द जी सोनी साहब ने श्रीफल चढ़ाकर अपने-अपने यहाँ पर चातुर्मास कराने हेतु निवेदन किया।'' पाटनी जी ने २६ जून १९६९ ‘जैन मित्र' अखबार सूरत की एवं २९ जून १९६९ गुरुवार ‘जैन गजट' अजमेर की दो कटिंग मुझे दीं, जिसे मैं आपको बता रहा हूँ-

     

    पूज्य मुनि विद्यासागर जी का प्रथम दीक्षा जयन्ती उत्सव

     

    ‘‘गत २० जून ६९ को स्थानीय सेठ सर भागचन्द जी सा. सोनी की नसियाँ जी में मध्याह्न १ बजे से पूजा-पाठादि विशेष कार्यक्रमों सहित पूज्य श्री १०८ आचार्य ज्ञानसगार जी महाराज के प्रथम दीक्षित युवक शिष्य पूज्य मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का प्रथम दीक्षा जयन्ती समारोह सोत्साह मनाया गया। विविध कार्यक्रमों के बाद ३ बजे से नसियाँ जी में ही श्री रा.ब. सेठ सर भागचन्द जी सा. सोनी की अध्यक्षता में एक विशाल सभा हुई। जिसमें स्थानीय दैनिक नवज्योति के समाचार सम्पादक श्री मोहनराज जी भण्डारी, सर्व श्री सुन्दरलाल जी सोगाणी एडव्होकेट, पं. विद्याकुमार जी सेठी, पं. हेमचन्द्र जी शास्त्री एम.ए., ब्र. मुख्तारसिंह जी एवं ब्र. महाराजप्रसाद जी हस्तिनापुर, मा. मनोहरलाल जी तथा युवक ब्र, दीपचन्द जी ने पूज्य मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के त्यागमय जीवन पर प्रकाश डाला। अनन्तर माननीय अध्यक्ष महोदय के प्रेरणाप्रद भाषण के बाद पूज्य आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी तथा पूज्य विद्यासागर जी महाराज के मार्मिक प्रवचन हुए। । अन्त में समारोह के संयोजक श्री निहालचन्द्र जी जैन द्वारा आभार प्रदर्शन के बाद कलशाभिषेक हुआ।''

     

    इस प्रकार आपके चरणानुगामी मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के ज्ञान-ध्यान-तप से हर कोई प्रभावित था। समाज का हर वर्ग चाहे विद्वान् हो, चाहे भक्त हो, चाहे महिला हो, चाहे पुरुष हो, चाहे युवा हो, चाहे जैन हो, चाहे अजैन हो सभी मनोज्ञ मुनि श्री विद्यासागर जी की संगति किसी न किसी रूप में करने की कोशिश करते । ऐसा ही एक संस्मरण टीकमचंद जी जैन (चांपानेरी) ने दिसम्बर २०१४ को मुझे सुनाया। वह मैं आपको लिख रहा हूँ-

     

    प्रतिदिन परीक्षा

     

    ‘‘सन् १९६९ की जून की गर्मी में सोनीजी की नसियाँ में हमने देखा मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज घण्टों-घण्टों स्वाध्याय करते रहते थे। कोई भी आ जाए तो नजर तक उठाकर नहीं देखते थे। मैं रोज जाता कभी सुबह, कभी दोपहर, कभी शाम और कभी रात में जाता, पर वे आशीर्वाद तक नहीं देते, पढ़ते रहते थे। ५-७ दिन बाद हम लोगों ने नमोऽस्तु किया तो हम लोगों के सौभाग्य से उन्होंने बिना देखे ही आशीर्वाद रूप हाथ उठा दिया। तब हमने पूछा महाराज आप इतना क्यों पढ़ते हैं क्या कोई परीक्षा दे रहे हैं? तो बोले-गुरु महाराज की परीक्षा प्रतिदिन देना पड़ती है, जितना वे पढ़ाते हैं उतना दूसरे दिन सुनाना पड़ता है, तभी वे आगे पढ़ाते हैं।'' | इस तरह विद्यासागर जी आपकी ही तरह एक पल भी अपना यहाँ-वहाँ की बातों में बिताया नहीं करते थे। जिन्दगी का एक-एक क्षण बेहद कीमती है, यह मुनि श्री विद्यासागर जी से अधिक कोई नहीं जानता था। आपने जितना ज्ञान-भोग बना-बनाकर खिलाया, आपका लाड़ला खाता ही चला गया। न खिलाने वाला थका और न खाने वाला अघाया। आप दोनों को एक-दूसरे की इतनी चिंता थी कि दोनों ही गुरु-शिष्य अपने आवश्यकों को पालकर शेष समय एक-दूसरे के लिए विनियोजित कर देते थे। आप शिष्य का निर्माण करते और शिष्य आपकी आज्ञा पालकर आपको निर्विकल्प बनाता । ये अनुग्रह और श्रद्धारूप शुद्ध प्रेम की हमजोली के बिना सम्भव नहीं था। ऐसे शुद्ध-प्रेमी गुरु-शिष्य के चरणों में दिल की गहराई से उपजे आस्थारूप प्रेम को समर्पित करता हुआ...

    आपका शिष्यानुशिष्य

     

     

     


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