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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 108 महावीर जयन्ती एवं श्रुतपंचमी महोत्सव की महत् प्रभावना

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१०८

    १६-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    समता के मेरु, धीर-वीर-गम्भीरता के सागर, चारित्र के हिमालय ज्ञान के अमृत कुण्ड परमश्रद्धेय दादा गुरु के पावन चरणों में त्रिकाल वन्दन... हे गुरुवर! जब आप महावीर जयंती महोत्सव पर अजमेर में सम्मिलित हुए और नसियाँ से केसरगंज की ओर विहार कर केसरगंज में कुछ दिन का प्रवास किया तब उस प्रवास के कुछ संस्मरण हमने सुने वह मैं आपको क्रमशः लिख रहा हूँ-

     

    महावीर जयन्ती महोत्सव की महत् प्रभावना

     

    इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने ‘जैन मित्र' २४-०४-१९६९ की एक कटिंग दी जिसमें छगनलाल जी पाटनी का समाचार इस प्रकार छपा हुआ है- “अजमेर में ३१-०३-१९६९ को प्रातःकाल महावीर जयन्ती के जुलूस में पूज्य आचार्य ज्ञानसागर जी के ससंघ पधारने से महती धर्म प्रभावना हुई। साथ ही मध्याह्न में जैन वीरदल के तत्त्वावधान में आयोजित समारोह में सरावगी मोहल्ला में महाराजश्री के प्रधान शिष्य मुनि श्री विद्यासागर के प्रवचन से महती धर्म प्रभावना हुई थी। उसी समय कलशाभिषेक एवं पूजन-भजन आदि भी श्री दिगम्बर जैन संगीत मण्डल अजमेर द्वारा हुए तथा साथ ही जैन वीरदल की वार्षिक रिपोर्ट श्री भागचंद जी गोधा, मंत्री द्वारा पढ़ी गई। पश्चात् महाराज श्री ने महावीर जैन पुस्तकालय का भी अवलोकन किया। रात्रि को ८ बजे स्ट्रिक्ट एण्ड सेशन जज श्री सरदारसिंह जी राठौड़ की अध्यक्षता में एक आम सभा हुई जिसमें जैन तथा जेनेतर विद्वानों के भगवान महावीर के सिद्धान्त एवं जीवन पर सारगर्भित भाषण हुए साथ ही कवि सम्मेलन का भी आयोजन हुआ।"

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    धर्मप्रभावना रथ के सारथी

    इन्दरचंद जी पाटनी ने बताया-'' अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह में आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज नसियाँ से विहार करके केसरगंज चले गए थे। केसरगंज गुरुभक्त समाज ने अत्यंत प्रसन्न होकर अगवानी की। प्रतिदिन केसरगंज में धर्मप्रभावना होने लगी किन्तु आपका स्वास्थ्य बिगड़ जाने से अजमेर समाज चिंतित थी। सर सेठ भागचंद जी सोनी साहब अजमेर के प्रसिद्ध वैद्यराज श्री सूर्यनारायण जी को केसरगंज लेकर गए थे और गुरुजी की सेवा में सोनी जी हर क्षण तत्पर रहते थे एवं मुनि श्री विद्यासागर जी, मुनि श्री विवेकसागर जी और ऐलक श्री सन्मतिसागर जी आदि गुरु महाराज की सेवा में अहर्निश सावधान रहते थे। चतुर्दशी के दिन पाक्षिक प्रतिक्रमण मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज आदि सभी एक साथ सुनाते थे। सुबह भी भक्ति आदि मुनि श्री विद्यासागर जी सुनाते थे और संघस्थ दोनों मुनिराज धर्म प्रभावना की बागडोर अपने हाथों में सम्भाले हुए थे।''

     

    मुनि श्री विद्यासागर जी का केशलोंच सम्पन्न

     

    अप्रैल माह में महावीर जयन्ती के बाद मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज ने दीक्षोपरान्त तीसरा केशलोंच किया। तब मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज का उद्बोधन हुआ। अन्य वक्ताओं ने भी मुनियों के गुणानुवाद किए। इस तरह आपके अस्वस्थ रहते हुए मुनि द्वय धर्म प्रभावना की जवाबदारी अपनी कुशलता से पूरी कर रहे थे। इस सम्बन्ध में छगनलाल जी पाटनी जी ने ‘जैन गजट' में २४-०४-१९६९ को एक समाचार प्रकाशित कराया-

    "अजमेर - यहाँ वयोवृद्ध चारित्रविभूषण ज्ञानमूर्ति श्री १०८ आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ विराजमान हैं। प्रतिदिन प्रातः व मध्याह्न में संघस्थ मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी तथा श्री विवेकसागर जी महाराज का प्रभावशाली उपदेश होता है। आचार्य श्री का स्वास्थ्य निरंतर सुधार पर है। महती धर्मप्रभावना हो रही है।''

    युवा मुनि श्री विद्यासागर जी : युवाओं के आकर्षण के केन्द्र

     

    दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने मुझे भीलवाड़ा चातुर्मास-२०१५ में बताया कि “मैंने २२-०५-१९६९ को केसरगंज में १८ वर्ष की उम्र में आकर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत लेकर संघ में प्रवेश किया। कारण कि युवा मनोज्ञ मुनि श्री विद्यासागर जी की दीक्षा के समय से ही उन्हें देख-देख मन में वैराग्य बढ़ता गया। उनका ज्ञान-ध्यान-तप देखकर संसार असार दिखने लगा। तब एक दिन निर्णय करके आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पास पहुँच गया और उनसे आत्मकल्याण का निवेदन किया। तब गुरुजी बोले- 'अभी व्रत लेकर साधना करो, पीछे दीक्षा के लिए सोचेंगे' और हमने नौ बार णमोकार मंत्र पढ़कर संसार का त्याग कर दिया। गुरु के संकेत पर केसरगंज समाज के एक महोदय ने मुझे सफेद धोती-दुपट्टा लाकर दे दिए और एक पीतल की केन लाकर दी।'' धन्य हैं गुरुवर! आपने ऐसा हीरा तराशा कि उसकी चमक से असली जौहरी आकर्षित होने लगे। यह सब आपकी महिमा है। आपने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण सरस्वती की सेवा में लगाया और वृद्धावस्था में सरस्वती पुत्रों को जन्म देने के लिए अन्तिम क्षणों को भी श्रमण संस्कृति के लिए समर्पित कर दिया। आपके बारे में जब कभी कोई बताता है तो मुझे अपने दुर्भाग्य पर रोना आ जाता है कि मुझे आपके श्रीचरणों के दर्शन, सन्निधि, सेवा से वंचित रखा। आपने अथाह परिश्रम कर श्रमण संज्ञा को सार्थक कर दिया। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी वालों ने मुझे ०४-११-२०१५ भीलवाड़ा में लिखकर दिया वह मैं आपको बता रहा हूँ-

     

    सरस्वतीपुत्र आचार्य श्री ज्ञानसागर जी का ज्ञानदान

     

    ‘‘तेज गर्मी और वृद्धावस्था के बावजूद भी अस्वस्थता के चलते हुए आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज केसरगंज के ग्रीष्मकाल प्रवास में संघस्थ साधुओं एवं ब्रह्मचारियों को आगम एवं शास्त्रों का स्वाध्याय कराते थे। सुबह आचार्य समन्तभद्र स्वामी रचित रत्नकरण्डक श्रावकाचार, मुझे पढ़ाते थे। प्रतिदिन चार श्लोक पढ़ाते और दूसरे दिन कण्ठस्थ सुनते थे। शाम को ब्रह्मचारी जमनालाल जी गंगवाल खाचरियावास वालों को क्रियाकोश पढ़ाते थे। दोपहर में मुनि श्री विद्यासागर जी एवं मुनि श्री विवेकसागर जी को बड़े आगम ग्रन्थ पढ़ाते थे। तब भीषण गर्मी पड़ रही थी, दिनभर लू के थपेड़े चलते थे फिर भी आचार्य श्री ज्ञानसागर जी गुरु महाराज ५-५ घण्टे संघ को पढ़ाया करते थे। उस वक्त दिन में कभी उन्हें लेटे नहीं देखा। उन्होंने १२-१३ वर्ष की अवस्था से जिनवाणी पढ़ना शुरु कर दिया था और जीवनभर पढ़ते रहे। जैनाचार्यों का ऐसा कोई ग्रन्थ नहीं जो उन्होंने न पढ़ा हो। पढ़ने के साथ-साथ वे उन ग्रन्थों के अध्ययन से चारों अनुयोगों में इतने पारंगत थे कि वे कोई भी ग्रन्थ हम शिष्यों को पढ़ाते तब स्वयं पुस्तक नहीं देखते थे अपितु हम शिष्य पुस्तक में से उच्चारण करते तो वे उसका सही उच्चारण एवं अर्थ-भावार्थ-विशेषार्थ समझा देते थे। इस तरह केसरगंज में संघ की तपस्या-ज्ञानसाधना निर्बाध चल रही थी। आगमयुक्त चर्या को देखकर अजमेर जैन समाज के प्रबुद्धवर्ग सन्त समागम करने हेतु केसरगंज प्रतिदिन उपस्थित होते। दिगम्बर जैन जैसवाल समाज केसरगंज ने २-३ रविवारीय प्रवचन के पूर्व मुनि संघ के समक्ष अपनी प्रार्थना रखी कि इस वर्ष का चातुर्मास केसरगंज में स्थापित करें। जिससे हम सभी संघ के साथ में धर्मार्जन कर सकें। अजमेर समाज के शिरोमणि सर सेठ भागचंद जी सोनी आदि गणमान्य समाज श्रेष्ठियों ने आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के पास आकर निवेदन किया कि २०-०६-१९६९ आषाढ़ शुक्ल पंचमी को मनोज्ञ मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रथम दीक्षा दिवस को समारोह पूर्वक नसियाँ जी में मनाना चाहते हैं, आप आशीर्वाद प्रदान करें। गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने मौन आशीर्वाद प्रदान किया।"

     

    श्रुतपंचमी महोत्सव में बही विवेक-विद्या-ज्ञान त्रिवेणीधारा

     

    दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया-

    “ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी २१ मई बुधवार १९६९ को दोपहर में श्रुतपंचमी महोत्सव आचार्यसंघ के सान्निध्य में केसरगंज दिगम्बर जैन समाज ने मन्दिर के अन्दर मनाया। प्राचीन आचार्यों के चारों अनुयोगों सम्बन्धी ग्रन्थों को विराजमान करके बड़े ही भक्ति कीर्तन के साथ अष्टद्रव्यों से पूजन की गई। फिर सभी साधु वृन्दों को शास्त्र भेंट किए गए। तदुपरान्त परमपूज्य मुनि श्री विवेकसागर जी, परमपूज्य मनोज्ञ मुनि श्री विद्यासागर जी, परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रासंगिक प्रवचन हुए। कुछ लोगों ने नित्यप्रति स्वाध्याय करने के नियम लिए। अन्त में सर सेठ भागचंद जी सोनी आदि गणमान्यों ने पुनः श्रीफल चढ़ाकर निवेदन किया कि परमपूज्य मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का प्रथम मुनिदीक्षा दिवस आषाढ़ शुक्ला पंचमी २० जून को आ रहा है हम सब की भावना है कि आचार्य संघ के सान्निध्य में नसियाँ जी में मुनिवर का दीक्षादिवस मनाया जाए। अतः आप आशीर्वाद प्रदान करें हम सब भक्तिभाव से महोत्सव को मना सकें। तब आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया। दूसरे दिन केसरगंज समाज ने श्रीफल चढ़ाया और निवेदन किया कि परमपूज्य मुनि श्री विद्यासागर जी का प्रथम दीक्षा दिवस केसरगंज में ही मनाया जाए। अचानक जून के प्रथम सप्ताह में गुरुजी ने विहारकर दिया और सुबह-सुबह नसियाँ जी पहुँच गए।'' इस तरह हे गुरुवर! आपके ज्ञानामृत के रसास्वादन का व्यसन और सर्व परीक्षाओं में पूर्णउत्तीर्ण मनोज्ञ मुनिराज श्री विद्यासागर जी की चारित्र सुगंधी के रसिक जन विशेषतः सरसेठ भागचंद जी सोनी एवं विद्वद्वर्ग आपश्री संघ का समागम नित्य करने के लिए आपके सान्निध्य की तृष्णा रखते । ऐसे भावलिंगी गुरुद्वय के चरणों का सामीप्य पाने हेतुभाव वन्दना करता हूँ।

    आपका शिष्यानुशिष्य

     

     

     

     


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